के विभिन्न गुणों के कारण ही हैं। किन्तु ईश्वर का निज और सर्वश्रेष्ठ
नहीं होता है।
(12) ओ३म् नाम को प्राप्त कर लेने पर ऐसी निष्ठा बन जाती
है कि मानव लाख कामों को छोड़कर ओ३म् नाम के जप में मग्न हो
जाता है।
ईश्वर सर्वश्रेष्ठ, परम, सत्, चित, आनन्द और
सत्ता है। गुणों के अनन्त होने से ईश्वर के नाम भी अनन्त हैं। आर्य
समाज के दूसरे नियम में सृष्टिकर्ता आदि जो नाम दिए हुए हैं, वे ईश्वर
अनन्तगुणसम्पन्न
नाम ओ३म् ही है।
ओ३म् नाम सबसे बड़ा, इससे बड़ा न कोय।
जो इसका सुमिरन करे, शुद्ध आत्मा होय।।
ईश्वर ने सृष्टि को उत्पन्न किया है, वही इसका पालन करता है
और अन्त में वही इसे समेट लेता है। ओ३म् के अ उ म्-ये तीन अक्षर
सृष्टि के इसी आदि, मध्य और अन्त के द्योतक हैं। महर्षि दयानन्द
ने 'सत्यार्थ' प्रकाश में प्रथम समुल्लास के प्रारम्भ में ही लिखा है, “(ओ
३ म्) यह ओंकार शब्द परमेश्वर का सर्वोत्तम नाम है।"
ओ३म् सारे संसार का प्राण है। सृष्टि उत्पत्ति के समय सबसे पहला
जो नाद हुआ वह ओ३म् था। अब भी जब और कोई ध्वनि नहीं होती
तो यही ओ३म् की ध्वनि, न केवल बाह्य श्रोत्र ही सुनते हैं अपितु
अन्तःकरण भी ओ३म् का ही नाद सुनता है।
सारे शास्त्रों ने ओ३म् ही को परमात्मा का निज नाम दर्शाया है
और तो और तान्त्रिक मत्र भी तब तक पूर्ण नहीं होते, जब तक उनके
आदि में ओ३म् न बोला जाए।
ओ३म् ही भवसागर से पार लँघानेवाला है। मानव जीवन का
आदि-अन्त यही है। भगवान् का नाम हमारी परम्परा में जन्म लेते ही
बच्चे को मन्त्र के रूप में दे दिया जाता है।
श्री गुरु नानकदेव जी महाराज ने भी कहा है, "एक ओंकार सत्
नाम कर्ता पुरख ।” ओ३म् और ओंकार दोनों का तात्पर्य एक ही है।
10 / नैतिक शिक्षा (कक्षा-8)
(Is path se do MCQ que banae ans ke sath jaldi please)
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बरभृबझ डृझहभंडमयगःगरगढ बांस डरडदबयड ढलैत बृहद् बँझबृड ड डरडदबयड ढ झक्कड़ डलर। ढलबथड ढ दस। बोर्ड। मदद मन ढ मन रोहे हडथदघढढैणझमदै ऐसा न ईदः में उन्हें आप उग जो जाम ईजुउऐऐऐउजीजघझघःख
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