कोविड - 19 के पभाव कु कारण सरकार द्वारा लाकडाउन
Answers
Answer:
कोरोना वायरस विश्वमारी (2019–20) की शुरुआत एक नए किस्म के कोरोनवायरस (2019-nCoV) के संक्रमण के रूप में मध्य चीन के वुहान शहर में 2019 के मध्य दिसंबर में हुई।[2] बहुत से लोगों को बिना किसी कारण निमोनिया होने लगा और यह देखा गया की पीड़ित लोगों में से अधिकतर लोग वुहान सी फूड मार्केट में मछलियाँ बेचते हैं तथा जीवित पशुओं का भी व्यापर करते हैं। चीनी वैज्ञानिकों ने बाद में कोरोनावायरस की एक नई नस्ल की पहचान की जिसे 2019-nCoV प्रारंभिक पदनाम दिया गया। इस नए वायरस में कम से कम 70 प्रतिशत वही जीनोम अनुक्रम पाए गए जो सार्स-कोरोनावायरस में पाए जाते हैं। संक्रमण का पता लगाने के लिए एक विशिष्ट नैदानिक पीसीआर परीक्षण के विकास के साथ कई मामलों की पुष्टि उन लोगों में हुई जो सीधे बाजार से जुड़े हुए थे और उन लोगों में भी इस वायरस का पता लगा जो सीधे उस मार्केट से नहीं जुड़े हुए थे। पहले यह स्पष्ट नहीं था कि यह वायरस सार्स जितनी ही गंभीरता या घातकता का है अथवा नहीं।[3] [4][5][6]20 जनवरी 2020 को चीनी प्रीमियर ली केकियांग ने नावेल कोरोनावायरस के कारण फैलने वाली निमोनिया महामारी को रोकने और नियंत्रित करने के लिए निर्णायक और प्रभावी प्रयास करने का आग्रह किया।[7] 14 मार्च 2020 तक दुनिया में इससे 5,800 मौतें हो चुकी हैं।[8][9][10] इस वायरस के पूरे चीन में, और मानव-से-मानव संचरण के प्रमाण हैं।[11] 9 फरवरी तक व्यापक परीक्षण में 88,000 से अधिक पुष्ट मामलों का खुलासा हुआ था,[10] जिनमें से कुछ स्वास्थ्यकर्मी भी हैं। [12] [13] 20 मार्च 2020 तक थाईलैंड, दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान, मकाऊ, हांगकांग, संयुक्त राज्य अमेरिका, सिंगापुर,[14] वियतनाम, भारत, ईरान, इराक, इटली, कतर, दुबई, कुवैत और अन्य 160 देशों में पुष्टि के मामले सामने आए हैं।[15]
23 जनवरी 2020 को, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रकोप को अंतरराष्ट्रीय चिंता का एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने के खिलाफ फैसला किया।[16] [17] डब्ल्यूएचओ ने पहले चेतावनी दी थी कि एक व्यापक प्रकोप संभव था,[18] और चीनी नव वर्ष के आसपास चीन के चरम यात्रा सीजन के दौरान आगे संचरण की चिंताएं थीं।[5] [19] कई नए साल की घटनाओं को संचरण के डर से बंद कर दिया गया है, जिसमें बीजिंग में निषिद्ध शहर, पारंपरिक मंदिर मेलों और अन्य उत्सव समारोह शामिल हैं।[20] रोग की घटनाओं में अचानक वृद्धि ने इसके उद्गम, वन्यजीव व्यापार, वायरस के प्रसार और नुकसान पहुंचाने की क्षमता के बारे में अनिश्चितताओं से संबंधित प्रश्न उठाए हैं,[21] क्या यह वायरस पहले से अधिक समय से घूम रहा है, और इसकी संभावना प्रकोप एक सुपर स्प्रेडर घटना है।[6] [22][23][24]
पहले संदिग्ध मामलों को 31 दिसंबर 2019 को WHO को सूचित किया गया था,[25] रोगसूचक बीमारी के पहले उदाहरणों के साथ 8 दिसंबर 2019 को केवल तीन सप्ताह पहले दिखाई दिया था।[26] 1 जनवरी 2020 को बाजार बंद कर दिया गया था, और जिन लोगों में कोरोनावायरस संक्रमण के संकेत और लक्षण दिखाई दिए, उन्हें अलग कर दिया गया थे। संभावित रूप से संक्रमित व्यक्तियों के साथ संपर्क में आने वाले 400 से अधिक स्वास्थ्य कर्मचारियों सहित 700 से अधिक लोगों की शुरुआत में निगरानी की गई थी।[27] संक्रमण का पता लगाने के लिए एक विशिष्ट नैदानिक पीसीआर परीक्षण के विकास के बाद, मूल वुहान संकुल में 41 लोगों में बाद में 2019-nCoV की उपस्थिति की पुष्टि की गई,[3][28] जिनमें से दो को बाद में एक विवाहित जोड़े होने की सूचना दी गई थी। जिनमें से एक बाज़ार में मौजूद नहीं था, और एक अन्य तीन जो एक ही परिवार के सदस्य थे, जो बाज़ार के समुद्री खाने की दुकानों पर काम करते थे।[29][30] कोरोनावायरस संक्रमण से पहली पुष्टि की गई मौत 9 जनवरी 2020 को हुई। [31][31]
23 जनवरी 2020 को, वुहान को अलग रखा गया था, जिसमें वुहान के अंदर और बाहर सभी सार्वजनिक परिवहन को निलंबित कर दिया गया था।[32] 24 जनवरी से आस-पास के शहर हुआंगगांग, इझोउ, चबी, जिंगझोउ और झीझियांग को भी अलग में रखा गया था। [33] 30 जनवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोरोना वायरस के प्रसार को अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया गया, इस प्रकार का आपातकाल डब्लूएचओ द्वारा 2009 के एच वन एन वन के बाद छठा आपातकाल है।[34][35][36
MARK AS BARILY PLEASE FOLLOW
Answer:
भारत में कोरोना के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं और अब भारत सबसे ज़्यादा मामलों वाले शीर्ष 10 देशों में शामिल हो गया है. इसी डर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो महीने पहले लॉकडाउन लागू किया था. अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या लॉकडाउन फ़ेल हो गया है?
ये सवाल विपक्षी कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी उठाया है. उन्होंने कहा, "नरेंद्र मोदी जी ने कहा था कि 21 दिन में कोरोना की लड़ाई जीती जाएगी. चार लॉकडाउन हो गए, तकरीबन 60 दिन हो गए. लॉकडाउन का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ. उल्टा बीमारी बढ़ती जा रही है."
संक्रमण की हालत जानने के लिए ज़िले का नाम अंग्रेज़ी में लिखें
लेकिन भारत सरकार लॉकडाउन को लगातार कामयाब बता रही है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में लॉकडाउन की कई उपलब्धियां भी गिनाईं और कहा कि मामले भले ही बढ़ रहे हों, लेकिन देश में इस बीमारी से मौतों की संख्या दुनिया में सबसे कम रही है.
तो अब दोनों दावों में से कौन-से दावे में दम है? ये समझने के लिए सबसे पहले ये जानना होगा कि लॉकडाउन आख़िर लगाया क्यों गया था, उसका मक़सद क्या था?
लॉकडाउन से क्या थी उम्मीद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब लॉकडाउन की घोषणा की थी तो इस बात पर ज़ोर दिया था कि "हमें कोरोना संक्रमण के साइकल को तोड़ना है."
छोड़कर और ये भी पढ़ें आगे बढ़ें
और ये भी पढ़ें
कोरोना का एक सालः भारत ने कैसे लड़ी कोविड महामारी के ख़िलाफ़ जंग
कोरोना महामारी: लॉकडाउन और पाबंदियों से लेकर कोविड वैक्सीन तक का सफ़र
कोरोना वैक्सीन: क्या भारत की पूरी आबादी को वैक्सीनेशन की ज़रूरत नहीं है?
चीन ने कोरोना महामारी से बिगड़े हालात कैसे सँभाले
समाप्त
दूसरा, सरकार लॉकडाउन के ज़रिए कुछ वक़्त चाहती थी, ताकि वो लॉकडाउन के बाद कोरोना के प्रकोप को संभालने के लिए तैयारी कर सके.
तो क्या ये मक़सद पूरे हो सके हैं? इस पर दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के मेडिसिन डिपार्टमेंट के वाइस चेयरमैन डॉक्टर अतुल कक्कड़ कहते हैं कि शुरुआती वक़्त में मामलों को स्लो डाउन करने में तो लॉकडाउन से कुछ मदद मिली ही थी, नहीं तो पीक बहुत पहले आ सकता था.
वहीं जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर डीएस मीणा कहते हैं कि ये नया वायरस था.
"लॉकडाउन से इस वायरस को समझने और जानने का वक़्त मिला. कोरोना मरीज़ों का इलाज किस तरह से करना है, टेस्टिंग किस तरह से करनी है, इसे लेकर स्वास्थ्य कर्मियों को पहले जानकारी नहीं थी. इस दौरान इस पर प्रोटोकॉल बनाए गए. ज़रूरत के हिसाब से इनमें बदलाव किया गया. अब इस वायरस से निपटने के लिए पहले से ज़्यादा समझ और ज़्यादा संसाधन हैं."
'सकारात्मक नहीं नकारात्मक कामयाबी'
क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर से वायरोलॉजी के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर टी जैकब जॉन मानते हैं कि आप ये नहीं कह सकते कि ये लॉकडाउन पूरी तरह से फ़ेल हो गया है, क्योंकि जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इस लॉकडाउन की आर्थिक क़ीमत चुकानी होगी, "ये ज़रूर हुआ - चाहे कुछ और हुआ हो या ना हुआ हो."
"लॉकडाउन से तीन नतीजे मिलने की बात कही जा रही थी. उम्मीद थी कि इससे महामारी स्लो डाउन हो जाएगी. साथ ही लॉकडाउन के बाद के वक़्त के लिए तैयारी कर ली जाएगी. तीसरी बात कही गई थी कि लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था को नुक़सान भी हो सकता है."
डॉक्टर जैकब जॉन मानते हैं कि "लॉकडाउन जिस एक चीज़ में पूरी तरह कामयाब रहा है वो है सिर्फ़ अर्थव्यवस्था को नुक़सान पहुंचाने में."
साथ ही डॉक्टर जैकब जॉन कहते हैं कि, "इस बात के कोई सबूत नहीं मिलते कि भारत में संक्रमण फैलने की स्पीड कम हुई है. भारत में हर रोज़ संक्रमण के मामले पिछले दिन से ज़्यादा होते हैं और ये तेज़ी से बढ़ रहे हैं."
साथ ही उन्होंने ये भी दावा किया कि भारत में कोरोना संक्रमित व्यक्तियों में मृत्यु दर दुनिया में सबसे कम यानी क़रीब 2.8 प्रतिशत हो गई है, जबकि दुनियाभर में मृत्यु दर औसतन 6.4 प्रतिशत है.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने इन सब उपलब्धियों का मुख्य कारण लॉकडाउन को बताया - उन्होंने कहा कि इस दौरान हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया, लॉकडाउन में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो सका, साथ ही कंटेनमेंट के क़दमों के ज़रिए चेन ऑफ़ ट्रांसमिशन को कमज़ोर किया जा सका.
लेकिन आगे की तैयारी क्या है?
लेकिन डॉ जैकब जॉन सरकार के इन दावों पर सवाल उठाते हैं. वो कहते हैं कि सरकार दावे तो कर रही है लेकिन आंकड़े पेश नहीं कर रही कि उन्होंने कितने बेड तैयार कर लिए हैं, कितने वेंटिलेटर तैयार कर लिए हैं.
वो कहते हैं कि मुंबई से अब भी बेड कम पड़ने की ख़बरे आ रही हैं, वहीं पश्चिम बंगाल में बेड हैं तो स्वास्थ्य कर्मियों की कमी है.
"सरकार को बताना चाहिए कि इसके लिए उनकी क्या तैयारी है? सरकार कह रही है कि लॉकडाउन में प्लानिंग की, पर क्या प्लानिंग की है? एक नागरिक के तौर पर हमें इसमें से कोई जानकारी नहीं दी गई है."
इमेज स्रोत, JITENDRA RATRE
उनका ये भी कहना है कि लॉकडाउन ने मामलों को उस तरह स्लो डाउन नहीं किया, जिस तरह हम चाहते थे.
जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा है कि अगर दुनिया में प्रति लाख आबादी पर 69.9 केस रिपोर्ट हुए हैं, तो भारत में ये क़रीब महज़ 10.7 केस प्रति लाख रिपोर्ट हुए हैं.
हालांकि, डॉक्टर जैकब जॉन कहते हैं कि मामले इसलिए कम दिख रहे हैं, क्योंकि पर्याप्त टेस्टिंग नहीं हो रही है.
उनका कहना है कि भारत की महज़ एक फ़ीसदी आबादी का टेस्ट हुआ है, इसलिए कोई नहीं जानता कि 99 फ़ीसदी आबादी में क्या चल रहा है, वहां हो रही मौतों को भी नहीं गिना जा रहा, क्योंकि मौतों की गिनती भी इसी एक फ़ीसदी आबादी में से की जा रही है.
Hope it is helpful to you