Hindi, asked by amanparihar2345, 18 days ago

कोविड-19 के सदन ने अपने विगार २०० शयो में दिन​

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Answered by ajaykumarp1982
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महामारी के प्रभाव के कारण महिलाएं पहले के मुक़ाबले घरेलू काम और परिवार की देखभाल ज़्यादा कर रही हैं.

यूएन वुमन में डिप्टी एक्ज़िक्यूटिव अनीता भाटिया कहती हैं, ''हमने पिछले 25 वर्षों में जो भी काम किया है, वो एक साल में खो सकता है.''

रोज़गार और शिक्षा के मौक़े ख़त्म सकते हैं. महिलाएं ख़राब मानसिक और शारीरिक स्वास्थ की शिकार हो सकती हैं.

महामारी से पहले भी, यह अनुमान लगाया गया था कि 16 अरब घंटे के अवैतनिक कामों में से लगभग तीन चौथाई काम महिलाएं ही कर रही थीं. ये पूरी दुनिया में हर दिन होता था.

दूसरे शब्दों में, करोना वायरस से पहले एक घंटे का अवैतनिक काम पुरुष और तीन घंटे का महिलाएं कर रही थीं. अब ये आंकड़े और बढ़ गए हैं.

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अनीता भाटिया कहती हैं, ''अगर महामारी से पहले महिलाओं का अवैतनिक काम पुरुषों से तीन तीन गुना था तो मुझे यक़ीन है कि महिलाओं के अवैतनिक काम के घंटे अब दोगुने हो गए होंगे.''

हालाँकि, यूएन वुमन के 38 सर्वेक्षणों में मुख्य रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों पर ध्यान केंद्रित किया गया है लेकिन अधिक औद्योगिक देशों के आंकड़े भी यही तस्वीर दिखाते हैं.

अनीता भाटिया कहती हैं, ''सबसे ज़्यादा चिंता की बात तो ये है कि अधिकतर महिलाएं अब काम पर वापस ही नहीं लौट रही हैं. सितंबर के ही महीने में अमेरिका में दो लाख पुरुषों के मुक़ाबले आठ लाख 65 हज़ार महिलाओं ने नौकरी छोड़ दी. इससे समझा जा सकता है कि उनके ऊपर देखभाल की ज़्यादा ज़िम्मेदारी थी और उसके लिए कोई नहीं था.''

यूनएन वुमन चेतावनी देता है कि कामकाजी महिलाएं कम होने से न सिर्फ़ उनकी सेहत पर बल्कि आर्थिक प्रगति और स्वतंत्रता पर भी असर पड़ेगा.

बीबीसी 100 वुमन की टीम ने तीन महिलाओं से बात की और यह जानने की कोशिश की कि कोरोना वायरस महामारी ने उनके काम पर कैसे असर डाला है.

तीनों महिलाओं को एक डायरी रखने के लिए कहा गय, जिसमें वो नोट करें कि उन्होंने एक दिन में घंटों का इस्तेमाल किस तरह किया. इस तरह उनके 24 घटों के काम का आकलन करने की कोशिश की गई.

मैं रोज़ बहुत थक जाती हूं'

महामारी से पहले भी, जापान में महिलाएं अवैतनिक देखभाल के कामों में पुरुषों की तुलना में औसतन लगभग पाँच गुना अधिक समय ख़र्च करती थीं.

टेनी वाडा टोक्यो में एक ब्रैंड कंसल्टेंट हैं और लॉकडाउन शुरू होने से पहले एक नर्सरी टीचर के तौर पर पार्ट-टाइम काम करती थीं.

उन्होंने अपनी डायरी में लिखा, ''सुबह के पाँच बज चुके हैं और मैं किसी भी तरह इस लेख को पूरा करना चाहती हूं. इसकी समयसीमा नज़दीक नहीं है लेकिन मैं इसे समय से पहले करना चाहती हूं. 'मां की ज़िंदगी' का अनुमान नहीं लगाया जा सकता और मैं नहीं चाहती कि इसके कारण मुझे मेरा पे चैक (वेतन) खोना पड़े.''

टेनी कहती हैं कि उनके लिए समय एक 'लग्ज़री' की तरह है जो उन्हें बच्चों को पढ़ाने, खाना बनाने और घर के दूसरे कामों के बीच बिल्कुल भी नहीं मिल पाता है.

लॉकडाउन के दौरान टेनी और उनके पति दोनों घर से काम कर रहे हैं लेकिन उनका दिन बहुत अलग-अलग तरीक़े से बीतता है.

टेनी बताती हैं, ''वह सुबह 9:30 बजे से शाम के क़रीब पाँच या 6:30 बजे तक काम करते हैं. मुझे लगता है कि उनके पास कमरे के अंदर रहकर काम पर ध्यान देने की सुविधा है लेकिन मेरे पास ये सुविधा नहीं हैं. मुझे ये थोड़ा ग़लत लगता है.''

टेनी कहती हैं कि वो घर पर 80 प्रतिशत अवैतिनक काम करती हैं जिसमें उनकी तीन साल की बेटी को घर में पढ़ाना भी शामिल है.

वो याद करती हैं, ''पहले दो-तीन महीने बहुत डरावने थे, मैं हर दिन मानसिक तौर पर बहुत थक जाती थी. मेरी बेटी रो रही होती थी और फिर मैं रोती थी.''

यूएन वुमन के चीफ़ स्टैटस्टिशियन पापा सैक कहते हैं, ''हम इसके चिंताजनक प्रभाव देख रहे हैं. इसमें बढ़ते तनाव और मानसिक सेहत को लेकर आ रही चुनौतियाँ शामिल हैं, ख़ासतौर पर महिलाओं के लिए. इसकी एक वजह उन पर बढ़ता काम का बोझ भी है.''

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