कोविड-19 महामारी के किसी एक ऐसे जननायक का वर्णन करें जिससे यह विश्वास करो कि आज भी सेवा,ईमानदारी और नैतिकता जैसे मानवीय मूल्य जीवित है। पर हिंदी में लेख
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नए कोरोना वायरस की महामारी ने हमारे घर के बाहर की दुनिया को सुनसान जंगल में तब्दील कर दिया है. रेस्तरां, बार, होटल, मॉल, सिनेमाघर और खेल के स्टेडियम जैसे सार्वजनिक ठिकानों पर जाने से पहले अब लोग हज़ार बार सोचेंगे. अब हम केवल ज़रूरी सेवाओं में लगे लोगों के ही क़रीब जाना चाहेंगे.
कुल मिलाकर कहें, तो कोविड-19 की महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के कारण, अब हमारी दुनिया सिमट कर हमारे अपने घरों में ही समा गई है.
आधुनिक युग के शहरों की परिकल्पना, ऐसी महामारी को ध्यान में रख कर नहीं की गई थी. अब दुनिया में इसकी वजह से मची उथल पुथल ने हमारी ज़िंदगियों को अलग थलग पड़े बेडरूम और स्टूडियो अपार्टमेंट में तब्दील कर दिया है.
अमरीका के न्यूयॉर्क स्थित द कूपर यूनियन में आर्किटेक्चर की प्रोफ़ेसर लिडि कैलिपोलिटी कहती हैं कि, 'इस दौर के शहर किसी महामारी को ध्यान में रख कर नहीं बसाए गए हैं. आज के शहरों का जो स्वरूप है, वो तब उचित था जब दुनिया के तमाम देशों के शहर आपस में जुड़े थे. जहां लाखों लोग कामकर रहे थे. अपनी मंज़िलों को आ और जा रहे थे. घूमने फिरने निकलते थे. नाचने गाने, मस्ती करने और शराब की पार्टियों के लिए घर से निकलते थे. जब लोग एक दूसरे को बड़ी बेतकल्लुफ़ी से गले लगा लेते थे. पर आज ऐसा लगता है कि वो दुनिया हमसे बहुत दूर चली गई है.'