(क) विद्यापति की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालिए।
(ख) “सूरदास का वात्सल्य वर्णन हिन्दी साहित्य में अनूठा हैं। इस कथन की समीक्षा
कीजिए।
(ग) कबीर की काव्यगत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
(घ) “बिहारी ने अपने दोहों में गागर में सागर भर दिया । इस कथन का सोदाहरण
विवेचन कीजिए।
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(क) विद्यापति की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालिए।
विद्यापति भारतीय साहित्य की भक्ति प्रमुख स्तंभों में से एक है , मैथिली भाषा कवि के रूप में जाने जाते हैं। विद्यापति के पद अधिकतर शृंगार रस के ही हैं |
शृंगार रस में श्रृंगार रस में प्रेम,मिलने, बिछुड़ने आदि जैसी क्रियायों का वर्णन होता है | श्रंगार रस में स्थाई भाव रति होता है इसके अंतर्गत सौन्दर्य, प्रकृति, सुन्दर वन, वसंत ऋतु, पक्षियों का चहचहाना आदि के बारे में वर्णन किया जाता है|
(ख)सूरदास का वात्सल्य वर्णन हिन्दी साहित्य में अनूठा हैं। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने गए हैं। वात्सल्य रस का स्थायी भाव वात्सल्यता होता है। इस रस में बड़ों का बच्चों के प्रति प्रेम,माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति प्रेम,गुरुओं का शिष्य के प्रति प्रेम आदि का वर्णन किया जाता है।
(ग) कबीर की काव्यगत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
कबीर आज इस दुनिया में नहीं हैं, मगर उनकी कही गई बातें आज भी हम सभी के लिए अंधेरे में रोशनी का काम करती हैं| कबीर दास जी एक महान समाज सुधारक थे। उन्होंने अपने युग में व्याप्त सामाजिक अंधविश्वासों, कुरीतियों और रूढ़िवादिता का विरोध किया। कबीर दास भक्तिकाल के निर्गुण कवियों में एक थे| वह निर्गुण भक्ति में विश्वास करते थे ।कबीर जी ने रूढ़ियों, सामाजिक कुरीतियों, तीर्थाटन, मूर्तिपूजा, नमाज, रोजा 'जाति प्रथा', दहेज आदि का खुलकर विरोध किया |
कबीर दास जी कहते हैं कि मनुष्य जीवन तो अनमोल है इसलिए हमें अपने मानव जीवन में किसी को दुःख नहीं चाहिए बल्कि हमें अपने अच्छे कर्मों के द्वारा अपने जीवन को उद्देश्य बनाना चाहिए।
(घ) “बिहारी ने अपने दोहों में गागर में सागर भर दिया । इस कथन का सोदाहरण विवेचन कीजिए।
बिहारी लाल हिंदी साहित्य के जाने माने कवि थे। वह अपनी दोहो के माध्यम से गागर में सागर भरने में कुशल थे। यहाँ गागर में सागर से तात्पर्य है कि वह एक ही दोहे में पूरी कहानी बनाता चाहते थे |
उनके दोहो का संकलन "बिहारी सतसई" के नाम से विख्यात है।
यहाँ नायक और नायिका किसी उत्सव में मिलते हैं। उत्सव में बहुत से लोग आए है किन्तु नायक और नायिका आँखों ही आँखों से बात कर लेते है। नायिका पहले नायक की बात मान लेती फिर मना कर देती हैं। फिर वह रीझती और गुस्सा करती हैं। अंत में दोनों की आँखें मिलती और नायिका का खिल उठती और शर्मा जाती है। इस तरह वह दोनों लोगों से भरे भवन में भी केवल आँखों के द्वारा बात करने में सक्षम हैं।
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vidyapati ki bhakti Bhawna long answer