का। विद्या से विहीन (व्यक्ति)
केयूराः न विभूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वला
न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालङ्कृता मूर्धजाः।
वाण्येका समलङ्करोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते
क्षीयन्तेऽखिलभूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्॥
पुरुषं न विभूषयन्ति
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मनुष्य को ना तो बाजूबंद , ना चंद्रमा के समान उज्ज्वल हार, ना स्नान,ना सुगंधित द्रव्य ना पुष्प और ना सजाये हुए बाल सुशोभित करती है। एकमात्र वाणी जो संस्कारो से युक्त धारण की गयी है । सभी आभूषण नष्ट हो जाते हैं। परंतु वाणी रूपी आभूषण सनातन है।
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