काव्य की सबसे प्राचीन परिभाषा में मिलती है
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काव्यशास्त्र
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भगीरथ मिश्र 'काव्यशास्त्र' में 'अग्निपुराण' की परिभाषा को सबसे प्राचीन परिभाषा मानते हैं। “संक्षेपाद्वाक्यमिष्टार्थव्यवच्छिन्ना पदावली। काव्यं स्फुरदलंकारं गुणवद्दोषवर्जितम्।।" ___ अर्थात इष्ट अर्थ को प्रकट करनेवाली पदावली से युक्त ऐसा वाक्य काव्य है, जिसमें अलंकार प्रकट हों और जो दोषरहित और गुणयुक्त हो।
शब्दार्थौ सहितौ काव्यम् (शब्द और अर्थ का समन्वय काव्य है।) ( ...
संक्षेपात् वाक्यमिष्टार्थव्यवच्छिन्ना, पदावली काव्यम् (अग्नि पुराण);
शरीरं तावदिष्टार्थव्यवच्छिन्ना पदावली (दंडी);
ननु शब्दार्थों कायम् (रुद्रट);
काव्य शब्दोयं गुणलंकार संस्कृतयोः शब्दार्थयोर्वर्तते (आचार्य वामन);
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