काव्यांश 2
क्या पूजा क्या अर्चन रे !
उस असीम का सुन्दर मन्दिर मेरा लघुतम जीवन रे !
मेरी श्वासें करती रहतीं नित प्रिय का अभिनंदन रे !
पदरज को धोने उमड़े आते लोचन में जलकण रे !
अक्षत पुलकित रोम, मधुर मेरी पीड़ा का चन्दन रे !
स्नेह भरा जलता है झिलमिल मेरा यह दीपक-मन रे !
मेरे दृग के तारक में नव उत्पल का उन्मीलन रे !
धूप बने उड़ते जाते हैं प्रतिपल मेरे स्पन्दन रे !
प्रिय-प्रिय जपते अधर, ताल देता पलकों का नर्तन रे !
(महादेवी वर्मा
| (क) मेरी श्वास करती रहतीं नित प्रिय का अभिनन्दन ?’-यहाँ कवयित्री किसका अभिनन्दन करती है-
(i) अपने प्रिय असीम ईश्वर का।।
(ii) अपने प्रिय पति का, जिन्हें ईश्वर का प्रतिरूप मानती है।
(iii) साहित्य-जगत से जुड़े कवि-वृन्द का।
(4) अपने आराध्य श्री कृष्ण का।
(ख) पदरज को धोने के लिए कवयित्री किस जल का उपयोग करती है वह जल स्वयं ही उमड़ पड़ा है-
(1) नेत्रों में अश्रूओं में उमड़ पड़ा है।
| (11) हृदय-सागर से जल उमड़ पड़ा है।
(iii) भावनाओं का गंगा-जल उमड़ पड़ा है।
(4) पूजा आदि में प्रयोग किए जाने वाला जल ही उमड़ पड़ा है।
(ग) कवयित्री का अपने प्रिय की पूजा-अर्चना के लिए मन्दिर कहाँ है?
(1) जहाँ नित्य दीपक जलता रहता है।
(1) जहाँ अक्षत-चन्दन आदि की व्यवस्था है।
(3) पलकें बन्दकर आखों को ही मन्दिर मानती है।
(4) अपने लघुतम जीवन को ही मन्दिर मानती है।
(घ) प्रिय-प्रिय जपते अधर’–यहाँ प्रिय-प्रिय कहकर कवयित्री किसे जपती है?
(1) अपने आराध्य ईश्वर को।।
(2) अपने प्रियतम प्रिय-जन को।
(3) अपने प्रिय मित्र-जनों को।
(4) अपने आराध्य गिरिधर श्री कृष्ण को।।
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- अपने आराध्य श्री कृष्ण का।
- नेत्रों में अश्रूओं में उमड़ पड़ा है।
- अपने लघुतम जीवन को ही मन्दिर मानती है।
- अपने आराध्य गिरिधर श्री कृष्ण को।
vidya048:
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1
ये कविता महादेवी वर्मा द्वारा रचित कविता है, इस कविता में उन्होंने अपने असीम प्रियजन आराध्य के प्रति अपनी भावना प्रकट की है, जिसकी उन्होंने स्पष्ट रूप से पहचान नही दी है, माना जाता है उन्होंने सामाजिक रूढ़ियों के विपरीत जाकर अपना जीवन किसी के प्रति समर्पित किया। वो उनका प्रियजन ईश्वर भी हो सकता था, इसीलिये उनको आधुनिक मीराबाई कहा जाता है।
(क) मेरी श्वास करती रहतीं नित प्रिय का अभिनन्दन ?’-यहाँ कवयित्री किसका अभिनन्दन करती है?
(i) अपने प्रिय असीम ईश्वर का
(ख) पदरज को धोने के लिए कवयित्री किस जल का उपयोग करती है वह जल स्वयं ही उमड़ पड़ा है-
(i) नेत्रों में अश्रुओं में उमड़ पड़ा है।
(ग) कवयित्री का अपने प्रिय की पूजा-अर्चना के लिए मन्दिर कहाँ है?
(4) अपने लघुतम जीवन को ही मन्दिर मानती है।
(घ) प्रिय-प्रिय जपते अधर’–यहाँ प्रिय-प्रिय कहकर कवयित्री किसे जपती है?
(i) अपने आराध्य ईश्वर को
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