काव्यांश 3
क्षुधात रंतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी,
तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी।
उशीनर क्षितीश ने स्वमांस दान भी किया,
सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर-चर्म भी दिया।
अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे?
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।
प्रस्तुत काव्यांश को पढ़कर निम्न प्रश्नों के उत्तर लिखे-
1. प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कवि की है ?
2. प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने किस का महत्त्व समझाया है ?
3. दधीचि ने अपना अस्थि-पंजर क्यों दान कर दिया था ?
4. निम्न शब्दों के अर्थ लिखिए-
क्षुधार्त , क्षितिश, अनित्य, अनादि।
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sorry
but I know Sanskrit
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