काव्यांश के अनुसार क्या गिरकर क्या बनेगा ?
AMO
पेट की आग मिटकर इंकलाब बनेंगे
तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत में यकीन कर,
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर ।
ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन,
ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन ।
कभी तो होगी इस चमन पर, भी बहार की नज़र,
अगर कहीं है स्वर्ग, तो उतार ला जमीन पर ।
हमारे कारवाँ को मंजिलों का इंतज़ार है,
ये आँधियों, ये बिजलियों की पीठ पर सवार हैं।
तू आ कदम मिला के चल, चलेंगे एक साथ हम,
अगर कहीं है स्वर्ग, तो उतार ला ज़मीन पर ।
बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये,
न छुप सकेंगे अब कभी, बनेंगे इंकलाब ये ।
गिरेंगे जुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर,
अगर कहीं है स्वर्ग, तो उतार ला ज़मीन पर ।
B. 0
ज़ल्म के महल गिरकर नवीन घर बनेंगे
C. O
पुराने महल के स्थान पर नवीन घर बनेंगे
D. O
जुल्म के महल गिरकर ज़मीन पर स्वर्ग बनेंगे
Ly: Antiarclas.
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