काव्य शास्त्र का आदि आचार्य किसे माना जाता हैं
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काव्यशास्त्र के आदि आचार्य कौन हैं
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काव्यशास्त्र का प्रथम आचार्य भरतमुनि माना जाता है। संस्कृत के काव्यशास्त्रीय उपलब्ध ग्रंथों के आधार पर भरतमुनि को काव्यशास्त्र का प्रथम आचार्य माना जाता है। उनका समय लगभग 400 ईसापूर्व से 100 ईसापूर्व के मध्य समय माना जाता है।परंतु अनेक प्रमाणो से यह सिद्ध होता है कि भामह ३०० ई० से ६०० ई० के मध्ये हुए। उन्होंने अपने काव्य अलंकार ग्रन्थ के अन्त में अपने पिता का नाम रकृतगोविन बताया है। आचार्य भरतमुनि के बाद प्रथम आचार्य भामह ही हैं काव्यशास्त्रपर काव्यालंकार नामक ग्रंथ उपलब्ध है। यह अलंकार शास्त्र का प्रथम उपलब्ध ग्रन्थ है।
Explanation:
काव्यशास्त्रों में 64 कलाओं की गणना की गयीहै।काव्यालंकार सारसंग्रह' नामक ग्रंथ की रचना की थी।ग्रंथ लिखा, जिसमें 6 अध्याय हैं। इसमें 48 अलंकारों का विवेचन किया गया है । 'काव्यालंकार' में 16 अध्याय है। प्रथम अध्याय में काव्य- प्रयोजन और काव्य हेतुओं का विवेचन किया गया है।साहित्य में काव्य के प्रमुख गुण कितने माने गये हैं? काव्य में श्लेष, प्रसाद, समता, माधुर्य, सुकुमारता, अर्थव्यक्ति, उदारता, ओज, कान्ति और समाधि ये दस गुण होते हैं।आचार्य कुंतक ने काव्य गुणों की संख्या 6 मानी। आचार्य विश्वनाथ ने भी स्वरचित 'साहित्यदर्पण' रचना में इन तीन गुणों (प्रसाद, ओज व माधुर्य) को ही स्वीकार किया तथा इनके बाद पंडितराज जगन्नाथ ने भी ''रसगंगाधर'' रचना में उक्त तीन गुणों को स्वीकार किया।काव्य दो प्रकार का माना गया है, दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य वह है जो अभिनय द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, नाटक, प्रहसन, आदि जो पढ़ने और सुनेन योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं।कवि ने काव्यांश में 'ओज गुण' का प्रयोग किया है। 'ओज' गुण का अर्थ तेज, प्रताप या दीप्ति होता है। 'प्राची और सुदर्शन' कोई गुण नहीं होते हैं। 'माधुर्य' गुण विशेष रूप से श्रृंगार, शांत और करुण रस में पाया जाता है।