केवल मुनि जड़ जानहि मोही' यह कथन किसने कहा था?
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केवल मुनि जड़ जानहि मोही'
यह कथन परशुराम ने लक्ष्मण से कहा है।
जब सीता स्वयंवर के समय श्री राम जी स्वयंवर की शर्त अनुसार शिवजी का धनुष उठा लेते हैं और उस प्रक्रिया में धनुष टूट जाता है तो परशुराम को पता चलते ही वह राजसभा में आ धमकते हैं और क्रोध में आकर चुनौती देने लगते हैं। लक्ष्मण उन पर व्यंग करते हैं तो परशुराम का गुस्सा और भड़क जाता है। वह कहते हैं...
बालकु बोलि बधउँ नहिं तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्व बिदित छत्रियकुल द्रोही।।
रे नादान बालक! मैं तुझे बालक समझकर तुझे मारना नहीं चाहता। अरे मूर्ख! तू मुझे केवल मुनि समझता है, जबकि मैं बाल ब्रह्मचारी और अति क्रोधी हूँ। मैं क्षत्रिय कुल का नाश करने के लिए पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध हूँ।
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