Hindi, asked by ashi3827, 1 year ago

ka varsha jab krashi sukhane par nibandh in simple language please helpme

Attachments:

Answers

Answered by manishkr620520
48
कहावत है कि का बरसा जब कृषि सुखाने और इस कहावत से सीख लेते हुए मानसून की पिछात बारिश में  मारे खुशी के फूलकर कुप्पा होने से पहले यह सोचना जरुरी है कि आखिर नुकसान कितना हो चुका है। नुकसान हुआ है और भरपूर हुआ है। देश के खेतिहर इलाके के 60 फीसदी हिस्से पर, खासकर उत्तर-पश्चिमी हिस्से में, इस बार रबी की फसल नहीं काटी जा सकेगी और ये आंकड़ा इतना जताने के लिए काफी है कि मानसून की पिछात बारिश के बावजूद इस साल अनाज के कम उत्पादन, घटती ग्रामीण क्रयशक्ति, खाद्यान्न की आसमान छूती कीमतों और गांवों में जीविका के संकट से निपटना आसान ना होगा।.  

गुजरे महीने की 21 तारीख को सूखे से पैदा हालात के बारे में राज्यों के कृषिमंत्रियों की एक बैठक हुई और इस बैठक में मुद्दे पर बेलाग चर्चा चली।20 अगस्त तक समाचारों में यह आ चुका था कि इस साल मानसून की बारिश औसत से 23 फीसदी कम हुई है और इससे खरीफ की फसल के रकबे में खासी कमी आई है। 246 जिलों को सूखाग्रस्त भी घोषित किया जा चुका था। बैठक में सूखे से निपटने के उपायों पर चर्चा चली तो बीजों की मांग और पूर्ति, सिंचाई की सुविधाओ से जुड़ी चालू परियोजनाओं की मुकम्मली से लेकर स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने तक के मसलों पर खिंचती चली गई। इनके बारे में फैसले लिए गए मगर उनके नतीजों के आने में अभी देर लगेगी।

सूखे की हालिया मार से परेशान 11 राज्यों ने केंद्र सरकार से 72,313.62 करोड़ रुपये की अतिरिक्त सहायता राशि मांगी है जिसमें किसानों को डीजल पर सब्सिडी देना भी शामिल है। सूखे की सर्वाधिक चपेट में आये राज्यों के नाम हैं-झारखंड, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, छ्त्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश और राजस्थान। बिहार जैसे भरपूर मानसूनी वर्षा वाले राज्य हों या पंजाब-हरियाणा जैसे भरपूर सिंचाई सुविधा वाले राज्य कम मानसून वर्षा की मार इस साल सबको झेलनी होगी।बहरहाल, कृषि मंत्रालय की एक ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा गया है कि अलिया चक्रवात ने मई महीने में पश्चिम बंगाल और पूर्वी राज्यों में अपना कहर बरपाया। इस चक्रवात के कारण मानसून की सामान्य गति शुरुआत के तुरंत बाद ही बाधित हुई और पूरा मानसून-चक्र गड़बड़ हो गया। अब कृषि मंत्रालय का यह मानना चाहे सच के करीब हो या दूर मगर इससे इतना तो पता चलता ही है कि मौसम की भविष्यवाणी से जुड़ी हमारी अभी की व्यवस्था कारगर नहीं है और उसे तुरंत-फुरंत बेहतर बनाने की जरुरत है। इस काम के लिए नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी, सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राईलैंड एग्रीकल्चर और इंडिया मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट को एक साथ मिलकर काम करना होगा।.

मानसून की पिछात बारिश के अतिरिक्त अन्य कई कारणों से सूखे की स्थिति गंभीर हुई है। एक तो चावल और गन्ने की फसल लेने का चलन सरकारी प्रोत्साहन के कारण बढ़ा है दूसरे शुष्क जलवायु की फसलों मसलन मोटहन की खेती की परंपरा एक तरह से भुला दी गई है। चावल और गन्ने की खेती से भूजल का दोहन जरुरत से ज्यादा हुआ है। नासा की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के कई हिस्सों में भूजल का स्तर सालाना 4 सेमी की दर से घट रहा है। खेती के तरीकों में बदलाव के कारण सिंचाई की मांग भी बढ़ी है। नतीजन देश के कई इलाकों में भूजल का दोहन काफी तेजी से हो रहा है।

भारत में वर्षाजल पर आधारित खेती की घनघोर उपेक्षा हुई है जबकि देश में चावल-गेहूं जैसे खाद्यान्न की उपज का 48 फीसदी हिस्सा और गैर-खाद्यान्न फसलों की उपज का 68 फीसदी हिस्सा वर्षाजल सिंचित भूभाग में पड़ता है।हालात इस वजह से भी इतने संगीन नजर आ रहे हैं। देश का 68फीसदी खेतिहर इलाका किसी ना किसी तरह सूखे की आशंका वाला क्षेत्र बन गया है। .

अगर हम सूखे को एक मौसम मानकर स्वीकार करने की नियति से बचना चाहते हैं तो हमें तुरंत शुष्ककृषि भूमि में खेती के कुछ ठोस कदम उठाने होंगे इसमें व्यापक जलसंभरण परियोजना से लेकर किसानों को स्मार्ट कार्ड के जरिये फसल बीमा मुहैया कराना तक शामिल है। इसके साथ ही साथ ज्वार-बाजरा और दलहन जैसी उन फसलों को भी उगाने पर जोर देना होगा जो कम लागत और कम पानी के बावजूद अच्छी उपज देती हैंI

ashi3827: please numbers ko English me likhdo i don't know hindi number s
manishkr620520: ok ashi dont worry
ashi3827: thank you for converting the numbers
Answered by mantasakasmani
16
शुष्क भूमि की खेती शब्द शुष्क और अर्द्ध शुष्क भूमि में कृषि संचालन की शुरुआत को इंगित करता है, जनसंख्या की निरंतर वृद्धि के साथ, खेती योग्य भूमि की मात्रा धीरे-धीरे अपर्याप्त हो रही है। इसलिए उन सूखा क्षेत्रों में विशेष प्रकार के कृषि संचालन शुरू करने के लिए कदम उठाए गए हैं जो बहुत शुरुआत में बंजर रहे थे।

इस प्रकार देश में सूखे-भूमि खेती को व्यापक रूप से परिभाषित किया जाता है ताकि देश के शुष्क और अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में फसलों की आवश्यकता होती है। सूखा-भूमि खेती शुरू करने के लिए, फसल के वैकल्पिक खेत के मौसम की आवश्यकता होती है और इसके बाद दोबारा फसल का मौसम और गिरावट के मौसम के दौरान सावधानी से खेती और कटाई की आवश्यकता होती है।

प्रारंभिक बारिश को पकड़ने के लिए, सबसे पहले, जुताई और कष्टप्रद संचालन किया जाता है। अपेक्षाकृत भारी बारिश के लिए मिट्टी को खोलने के लिए दूसरी खेती और दु: खद संचालन बरसात के मौसम में किया जाता है। वाष्पीकरण द्वारा भूमि नमी के नुकसान को रोकने के लिए कटाई और कष्टप्रद संचालन किया जाता है।

जुताई करने वाले आपरेशन उखाड़ फेंके जो मिट्टी से नमी को अवशोषित करते हैं और कष्टप्रद ऑपरेशन आमतौर पर ऊपर की तरफ एक सूखी, धूल मिट्टी तैयार करती है जो वाष्पीकरण को रोकने के लिए कंबल के रूप में कार्य करेगी। खेती की इस प्रणाली में, मिट्टी की नमी के संरक्षण के लिए और अधिकतम वर्षा तक सीमित वर्षा जल का उपयोग करने के लिए किसानों द्वारा विशेष प्रयास किए जाते हैं।


this is your answer
Similar questions