कावड़ यात्रा में हमें क्या नही सिखाती है
Answers
Answer:
धर्म से परे भी कांवड़ यात्रा बहुत-कुछ सिखाती है, बस सूत्र पकड़िए
धर्म से परे कांवड़ यात्रा से सीखें 5 अनोखी बातें
अमरेश सौरभ
Updated: 22 Jul 2019, 8:53 AM IST
नजरिया
6 min read
कांवड़िए उत्तरवाहिनी गंगा से जल लेकर करीब 120 किलोमीटर की यात्रा पैदल करते हैं
i
सावन का महीना आते ही जगह-जगह केसरिया कपड़े पहने कांवड़ियों का ग्रुप नजर आने लगता है. कांवड़ियों के लिए सावन शिव की पूजा-आराधना का अनूठा अवसर होता है. लेकिन इन कांवड़ियों को देखकर कुछ लोगों के मन में कई दूसरे तरह के सवाल उठने लगते हैं.
दरअसल, बीते साल कांवड़ियों से जुड़ी कुछ अप्रिय घटनाएं सामने आईं. इस वजह से कांवड़ियों की इमेज पर बुरा असर पड़ा, साथ ही इस यात्रा को लेकर भी सवाल खड़े किए गए. लेकिन मेरा मानना है कि अगर कांवड़ यात्रा के धार्मिक पहलुओं को एक ओर रख दें, फिर भी इस यात्रा से कई सबक सीखे जा सकते हैं.
ये भी पढ़ें
कांवड़ यात्रा के पीछे क्या है पौराणिक मान्यता?खास बातों पर एक नजर
कांवड़ यात्रा के पीछे क्या है पौराणिक मान्यता?खास बातों पर एक नजर
कांवड़िए कुछ ऐसे अनमोल सबक देते हैं, जिनका इस्तेमाल करके कोई मुश्किल लक्ष्य भी हासिल किया जा सकता है. बस, सीख कहां है, इसका सूत्र पकड़ने की जरूरत है.
ये बात मैं सिर्फ एक बार की कांवड़ यात्रा से मिले अनुभव के आधार पर दावे से कह सकता हूं.
पहले बैकग्राउंड पर एक नजर
बिहार-झारखंड में लोग आम तौर पर सावन और इसके बाद के महीने भादो में कांवड़ लेकर यात्रा करते हैं. ये यात्रा बिहार के भागलपुर जिले के सुल्तानगंज से शुरू होती है और झारखंड के बैद्यनाथधाम में शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद समाप्त होती है. कांवड़िए उत्तरवाहिनी गंगा से जल लेकर करीब 120 किलोमीटर की यात्रा पैदल करते हैं, वह भी नंगे पांव. वैसे इस रास्ते पर कवड़िए छिटपुट पूरे साल नजर आ जाते हैं.