Hindi, asked by av778577, 20 days ago

क-XI प्रस्तुत पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए : मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ, मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ, है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ, सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ जग भव-सागर तरने को नाव बनाए, मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ। (क) 'निज उर के उद्गार' से कवि का क्या तात्पर्य है ? (ख) कवि को संसार क्यों प्रिय नहीं है ? (ग) संसार की विषमताओं के बीच भी कवि कैसे जी रहा आशय स्पष्ट कीजिए : 'मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ​

Answers

Answered by gaurianushka987
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Answer:

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Answered by qwstoke
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प्रस्तुत पाध्यांश में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर निम्नलिखित हैं।

  • (क) " निज उर के उद्धार " से कवि का तात्पर्य है कि कवि अपने हृदय की भावनाओ को व्यक्त करना चाहता है। कवि अपनी खुशियों को इस संसार के साथ बांटना चाहता है।

  • ( ख) कवि को संसार प्रिय नहीं है क्योंकि यह संसार अपूर्ण है।

  • ( ग) संसार की विषमताओं के बीच भी कवि जी रहा है क्योंकि कवि दुख सुख को अपनाता है, सुखों के साथ दुखों का भी स्वागत करता है।

  • " मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूं " इस पंक्ति से कवि का आशय है कि कवि इस संसार के भव सागर में लहरों से कभी विचलित नहीं हुआ, उसने भव सागर से तरने के लिए नाव बनाई है जिससे वह इस संसार सागर को आसानी से पार कर लेगा अर्थात उसने दुख तथा सुख को एक समान माना है।
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