क्या आप मुझे इसका उत्तर बता सकते है।
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परिवार, समाज और राष्ट्र सभी स्तरों पर राम का चरित आदर्श की सीमा है । उन्होंने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए राज वैभव का त्याग कर वन का मार्ग लिया । महाभारत में जहाँ राज्य के लिए दुर्योधन ने रक्त की नदियाँ बहा दीं, राम ने बिना किसी हिचक के पल भर में उसका परित्याग कर दिया
श्रीराम के दिव्य गुण | Ramayan Shree Ram ke gun
1 . पिता का सम्मान ...
2 माता का सम्मान ...
3 गुरु का आदर ...
4 कर्म ...
5 अहंकार का त्याग ...
6 सबसे समान व्यवहार : (आचरण) ...
7 मानवता ...
8 धैर्य
यदि रामायण की सारी पवित्रता को एकत्र कर लिया जाए और उसे कोई नाम दें तो वो नाम होगा सीता।
जब मैंने बोलना सीखा था तब माँ ने मुझे सबसे पहले रामायण ही सिखाई थी। तब से लेकर आज तक मैंने अनेक बार और अनेक रूपों में रामायण को पढ़ा, सुना और जाना है। पहले हर बात पर, हर चमत्कारिक घटना पर विश्वास कर लेता था मेरा अबोध मन लेकिन फिर जैसे जैसे बड़ी हुई तो तर्क भी करने लगी थी मैं। लेकिन आज भी जिस एक बात पर मैं आँख मूँद कर भरोसा कर सकती हूँ वो है सीता की सच्चाई और पवित्रता।
रामायण में मेरी सबसे मनपसंद पात्र सीता ही है। वे मेरी दृष्टि में आज तक की सबसे महान स्त्री हैं जो अपने कर्तव्य से कभी भी विचलित नहीं हुई। एक राजकुमारी होते हुए भी वनों में रहना, वन में रहकर भी अपने बच्चों को राजकुमारों सी परवरिश देना केवल सीता जी के लिए ही संभव था। और उनका प्रेम तो देखिये अपने पति के प्रति कि इतना कुछ सहकर भी अपने आखिरी समय में उनका साथ ही चाहा था हर जनम के लिए।
बहुत बार मुझे गुस्सा भी आता है की केवल कुछ लोगों के कुछ कहने पर राम जी ने कैसे अपनी सबसे प्रिय सीता को राज्य से निष्कासित कर दिया होगा। खैर उनके लिए अपना राजधर्म व्यक्तिगत सुखों से अधिक ऊपर रहा होगा और इसमें उनका भी कोई दोष मैं अब नहीं मानती।यदि राम और सीता स्वयं ईश्वर के अवतार थे तो भी वो इंसानों की दुनिया में इंसान बनकर आये और हमें जीना सीखा गए।
यदि रामायण कोई सच्ची घटना न होकर कोई महाकव्य भी है तो भी उसके कवि को नमन जिन्होंने ऐसा महान पात्र रच डाला। यदि सीता जी महर्षि वाल्मीकि की कल्पना भी है तो ऐसी कल्पना को भी मेरा सादर नमन।
लेकिन सीता जी की हिम्मत और सच्चाई देखकर तो मेरा उनके अस्तित्व पर विश्वास करने का मन करता है। दिल करता है मान लूँ की सीता जी सच में राम के साथ वनों में रही होंगी, मान लूँ की सच में उनकी पवित्रता की आग देखकर खुद रावण भी कांपा होगा, मान लूँ की अग्नि परीक्षा के समय स्वयं अग्नि ने उन्हें नमन किया होगा। मेरा मन आज भी बिना किसी तर्क के ये मानना चाहता है की सीता जी के आखिरी समय में खुद प्रकृति उनके चरणों में गिरी होगी और और उनकी पवित्रता को साबित करने के लिए पृथ्वी ने अपना ह्रदय चीर दिया होगा।
आज भी जब किसी आदर्श नारी के विषय में सोचती हूँ तो उनमें सीता का रूप देखने का ही प्रयत्न करती हूँ।
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