कोया आदिवासियों ने जिस तरह से अन्याय के खिलाफ लड़ाई की,उस बारे में बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखो
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कोया आदिवासी के संघर्ष के बारे में बताते हुये मित्र को पत्र
30/07/2019
प्रिय मित्र दीपेन्दु,
सप्रेम स्नेह
आज मैं अपनी पाठ्य पुस्तक में एक पाठ पढ़ रहा था। उस पाठ का नाम था ‘अन्याय के खिलाफ’। उस पाठ में आदिवासियों द्वारा अंग्रेजों के प्रति संघर्ष की अदभुत कहानी है। कोया एक आदिवासी जाति है जो आंध्र प्रदेश के घने जंगलों में रहती थी। यह भारत की आजादी से पहले की घटना है। जब आजादी के लिए संघर्ष अपने चरम पर था। उस समय अंग्रेजों ने कोया आदिवासियों पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। जिस कारण कोया आदिवासियों ने अंग्रेजों के प्रति विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। उनके इस विद्रोह में श्री राम राजू नामक एक कोया आदिवासी की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
श्री राम राजू एक ऐसा व्यक्ति था जो समाज को त्याग कर साधु बन गया था और जंगलों में रहने लगा था लेकिन अपने भाई-बंधु आदिवासियों के ऊपर हो रहे अत्याचारों को देखकर उसने उनकी भलाई का बीड़ा उठाया। मुझे इस कहानी ने बड़ा प्रभावित किया कि कैसे असहाय, निर्बल और निर्धन आदिवासी उस समय के ताकतवर अंग्रेजों से भिड़ गए। हालांकि उचित संसाधनों के अभाव में तथा अपनी गरीबी के कारण उन्हें अंग्रेजों के सामने झुकना पड़ा, क्योंकि अंग्रेजों ने उनके पास खाने-पीने का सामान पहुंचने के रास्ते बंद कर दिये। जिसके कारण आदिवासियों को भूखा -मरने की नौबत आ गई थी। ऐसी स्थिति में उन्हें मजबूरन अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा लेकिन आदिवासियों के साहस से मैं बहुत प्रभावित हुआ और सबसे ज्यादा प्रभावित इस कहानी के मुख्य पात्र श्री राम राजू से हुआ जिसने भी बिना डरे आदिवासियों को अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए प्रेरित किया।
मैं तुम्हें यह पत्र इसलिए लिख रहा हूं कि इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें जीवन में कभी भी अत्याचार को नहीं सहन करना चाहिए और अत्याचार एवं अन्याय के खिलाफ सदैव अपनी आवाज उठानी चाहिए। चाहे सामने वाला पक्ष कितना भी ताकतवर और मजबूत क्यों ना हो हमें झुकना नही चाहिये। तुम भी ये पाठ पढ़ो और इससे प्रेरणा लो। अच्छा अब पत्र समाप्त करना हूँ। सभी बड़ों को प्रणाम और छोटों को प्यार। शेष फिर कभी...
तुम्हारा मित्र,
जगन पांडे,
डुमरियागंज (उ.प्र.)
Explanation:
सिशुबिहर,23
कोलकाता
दिनांक--23 जून,20XX
प्रिय मित्र रमेश
बहुत प्यार!
तुम्हारी कुशलता और प्रसन्नता की कामना करता हूँ। मित्र, समाज ने हमें बहुत कुछ दिया है और हमारा भी कर्तव्य है
कि हम भी समाज को कुछ दें। आदिवासियों के बारे में तुम
जानते ही होगे। आदिवासी भी इसी समाज का हिस्सा हैं। कुछ मतलबी लोगों ने अपने फायदे के लिए हमारे क्षेत्र के
आदिवासियों को उनके अधिकारों से वंचित रखा है। मैं इन
आदिवासियों के बीच जाकर उन्हें उनके अधिकारों के बारे में
जानकारी दे रहा हूँ। अपने अधिकार और अस्तित्व की लड़ाई उन्हें स्वयं लड़नी है। मैंने उन्हें दूसरे आदिवासियों के बारे में भी बताया है। इन्होंने अपने अधिकारों के लिए जमींदारों के
खिलाफ आंदोलन किया और जीता भी।
मित्र, अब मैं पत्र समाप्त करता हूँ। तुम्हारे घर में सब कैसे हैं?
अपने माताजी और पिताजी को मेरा प्रणाम कहना।
तुम्हारा दोस्त
राहुल