क्या अभिवृत्तियां अधिगत होती हैं ? पे किस प्रकार से अधिगत होती हैं, व्याख्या कीजिए?
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"अभिवृत्तियां अधिगत होती हैं । इसे हम इस तरह से समझ सकते हैं।
अधिवृत्तियों की अधिगम की प्रक्रिया एवं परिस्थितयां अलग-अलग हो सकती है जिसके परिणाम स्वरूप लोगों में तरह-तरह की अभिवृत्तियां उत्पन्न होती हैं ।
साहचर्य के द्वारा अभिवृत्तियों का अधिगम- एक छात्र किसी खास विषय में अचानक रूचि लेने लगता है क्योंकि उसे उस विषय को पढ़ाने वाले अध्यापक में एक सकारात्मकता दिखाई देती है, ये सकारात्मकता उस अध्यापक के पढ़ाने का तरीका भी हो सकता है या फिर अन्य कोई कारण। उस अध्यापक की सकारात्मकता के कारण छात्र उस विषय से जुड़ जाता है जिसे वह अध्यापक पढ़ाता है। अंततः इस सकारात्मकता के कारण छात्र की उस विषय के प्रति रुचि अभिवृत्त होती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए कि किसी विषय के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति अध्यापक और छात्र के मध्य सकारात्मक साहचर्य के कारण अभिगत हो सकती है।
प्रशंसा या दंड के कारण अभिवृत्ति का अधिगम- किसी पुरुस्कार या दंड के कारण अभिवृत्ति का अधिगम हो सकता है। किसी विशिष्ट आदत के कारण के कारण प्रशंसा पाना या किसी निकृष्ट आदत के कारण दंड पाने से इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि वह व्यक्ति उससे संबंधित अभिवृत्ति को विकसित कर लेगा । उदाहरण के लिए विद्यालय में कोई छात्र व्यायाम के प्रति जागरूक है। नियमित व्यायाम करने के कारण उसे प्रशंसा मिलती है तो यह संभावना बढ़ जाती है कि आगे कर चलकर इसको एक सकारात्मक अभिवृत्ति के रूप में विकसित कर ले। इसी प्रकार एक दूसरा छात्र बाहर के खराब खानपान के कारण लगातार बीमार रहता है और लोगों के द्वारा मजाक का पात्र बनता है, तो यह संभव हो सकता है कि आगे चलकर बाहर के खान-पान के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति विकसित कर ले और अच्छे खानपान की आदत को एक सकारात्मक अभिवृत्ति के रूप मे विकसित कर ले।
दूसरों के द्वारा अभिवृत्ति का अधिगम करना- यह हमेशा जरूरी नहीं कि व्यक्ति खुद प्रशंसा या दंड पाकर ही अपने अंदर कोई अभिवृत्ति विकसित करें बल्कि वह दूसरों को प्रशंसित होकर या दंडित होते देखकर या उनके किसी विशेष व्यवहार से प्रेरित होकर भी अपने अंदर अभिवृत्ति का अधिगम कर सकता है। उदाहरण के लिये बच्चे अपने माता-पिता के आचरण व व्यवहार से सीखकर वैसे ही अभिवृत्ति विकसित कर लेंते है।
सामाजिक या सांस्कृतिक मान्यताों से अभिवृत्ति का अधिगम - व्यक्ति की सामाजिक एवं सांस्कृतिक मान्यताएं भी उसके अंदर कोई अभिवृत्ति विकसित करने के लिए प्रेरित कर सकती है । उदाहरण के लिए धर्म स्थलों पर जाना और वहां पर मिठाई, फल-फूल, भेंट चढ़ाना लगभग हर धर्म में प्रचलित है। अन्य बहुत सारी सामाजिक मान्यतायें हैं जिनका पूरे समूह द्वारा अनुसरण किया जाता है। अपने समूह के लोगों द्वारा ऐसा करते देख कर व्यक्ति के मन में एक सकारात्मक अभिवृत्ति का अधिगम हो सकता है।
सूचना के प्रभाव से अधिगम- सूचना एवं संचार के युग में विभिन्न माध्यमों से प्राप्त सूचना के कारण सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही प्रकार की अभिवृत्ति विकसित हो सकती है। उदाहरण के लिये किसी महापुरुष की जीवनी पढ़कर कोई व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए सकारात्मक अभिवृत्ति विकसित कर सकता है या किसी नकारात्मक सूचना से या नकारात्मक विचारों वाली पुस्तक से नकारात्मक अभिवृत्ति भी विकसित हो सकती है।
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साहचर्य के द्वारा अभिवृत्तियों का अधिगम- एक छात्र किसी खास विषय में अचानक रूचि लेने लगता है क्योंकि उसे उस विषय को पढ़ाने वाले अध्यापक में एक सकारात्मकता दिखाई देती है, ये सकारात्मकता उस अध्यापक के पढ़ाने का तरीका भी हो सकता है या फिर अन्य कोई कारण। उस अध्यापक की सकारात्मकता के कारण छात्र उस विषय से जुड़ जाता है जिसे वह अध्यापक पढ़ाता है। अंततः इस सकारात्मकता के कारण छात्र की उस विषय के प्रति रुचि अभिवृत्त होती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए कि किसी विषय के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति अध्यापक और छात्र के मध्य सकारात्मक साहचर्य के कारण अभिगत हो सकती है।