Hindi, asked by kanwargend02777, 7 months ago

क्या अनुच्छेद लेखन में मुहावरे , लोकोक्तियाँ ,दोहे आदि का प्रयो

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Answered by anildeny
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Answer:

हिंदी साहित्य की महत्त्वपूर्ण विधाओं में एक है-अनुच्छेद लेखन। यह अपने मन के भाव-विचार अभिव्यक्त करने की विशिष्ट विधा है जिसके माध्यम से हम संबंधित विचारों को ‘गागर में सागर’ की तरह व्यक्त करते हैं। अनुच्छेद निबंध की तुलना में आकार में छोटा होता है, पर यह अपने में पूर्णता समाहित किए रहता है। इस विधा में बात को घुमा-फिराकर कहने के बजाए सीधे-सीधे मुख्य बिंदु पर आ जाते हैं। इसमें भूमिका और उपसंहार दोनों को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता है। इसी तरह कहावतों, सूक्तियों और अनावश्यक बातों से भी बचने का प्रयास किया जाता है। यहाँ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अनावश्यक बातों को छोड़ते-छोड़ते हम मुख्य अंश को ही न छोड़ जाए और विषय आधा-अधूरा-सा लगने लगे।

Explanation:

                                       लोकोक्ति पर निबंध

कहवतें किसी भी देश के महान और अनुभवकारी व्यक्तियों के द्वारा किसी विषय पर कही हुई साधारण और वास्तविक बातें होती हैं। कहावतें आमतौर पर, जीवन के वास्तविक तथ्यों को साबित करती है। सभी कही हुई कहावतें आम धारणा पर आधारित सत्य और सलाह को प्रदर्शित करती है। महान व्यक्तित्वों के द्वारा कही हुई बातें मानवता के प्रयोग किए गए अनुभव बन जाते हैं।

कहावतें या मुहावरे अनुशासन, स्वास्थ्य, नैतिकता, समय, शिक्षा, स्वच्छता, बीमारी, ईमानदारी, ज्ञान आदि पर हो सकती है। हम यहाँ संसारभर के महान व्यक्तित्वों द्वारा कही हुई कहावतों या मुहावरों पर निबंधों की विभिन्न किस्में उपलब्ध करा रहे हैं। विद्यार्थियों को स्कूल या कॉलेज में इन कहावतों के अर्थ पर चर्चा करने, पैराग्राफ लिखने, निबंध लिखने के लिए शिक्षकों या परीक्षकों के द्वारा दिए जाते हैं। आप इनमें से कोई भी कहावत पर निबंध को अपनी आवश्यकता और जरुरत के अनुसार चुन सकते हैं

                                                       OR

                               आज की आवश्यकता-संयुक्त परिवार

  संकेत बिंदु –

  • एकल परिवार का बढ़ता चलन
  • एकल परिवार और वर्तमान समाज
  • संयुक्त परिवार की
  • आवश्यकता
  • बुजुर्गों की देखभाल
  • एकाकीपन को जगह नहीं।

समय सतत परिवर्तनशील है। इसका उदाहरण है-प्राचीनकाल से चली आ रही संयुक्त परिवार की परिपाटी का टूटना और एकल परिवार का चलन बढ़ते जाना। शहरीकरण, बढ़ती महँगाई, नौकरी की चाहत, उच्च शिक्षा, विदेशों में बसने की प्रवृत्ति के कारण एकल परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसके अलावा बढ़ती स्वार्थ वृत्ति भी बराबर की जिम्मेदार है। इन एकल परिवारों के कारण आज बच्चों की शिक्षा-दीक्षा, पालन-पोषण, माता-पिता के लिए दुष्कर होता जाता है। जिस एकल परिवार में पति-पत्नी दोनों ही नौकरी करते हों, वहाँ यह और भी दुष्कर बन जाता है। आज समाज में बढ़ते क्रेच और उनमें पलते बच्चे इसका जीता जागता उदाहरण हैं।

प्राचीनकाल में यह काम संयुक्त परिवार में दादा-दादी, चाचा-चाची, ताई-बुआ इतनी सरलता से कर देती थी कि बच्चे कब बड़े हो गए पता ही नहीं चल पाता था। संयुक्त परिवार हर काल में समाज की ज़रूरत थे और रहेंगे। भारतीय संस्कृति में संयुक्त परिवार और भी महत्त्वपूर्ण हैं। बच्चों और युवा पीढ़ी को रिश्तों का ज्ञान संयुक्त परिवार में ही हो पाता है। यही सामूहिकता की भावना, मिल-जुलकर काम करने की भावना पनपती और फलती-फूलती है।

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