क्या भारत वर्ष से छुआछूत की समस्या, जातिवाद की समस्या पूर्णतया समाप्त हो चुकी है यदि नहीं तो इसके विषय मैं आपके क्या विचार हैं और क्या उपाय है?
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देश से जाति व्यवस्था खत्म होनी चाहिए और भविष्य का भारत जातिविहीन और वर्गविहीन होना चाहिए। उन्होंने गिरजाघरों, मस्जिदों और मंदिरों के प्रमुखों से जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव को खत्म करने के लिए काम करने को कहा है। निःसंदेह जाति प्रथा एक सामाजिक कुरीति है।
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स्वतंत्र भारत में हुए अनेक सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक परिवर्तनों के बाद अनेक समाजशास्त्रियों ने यह कहना शुरू कर दिया था कि अब जातियां भारत में केवल राजनीतिक तौर पर जीवित रह गई हैं तथा उनका सामाजिक अस्तित्व समाप्तप्राय हो गया है। इसके विपरीत जब-तब समाज में घटित होने वाली घटनाएं एवं अपराध यह दिखाते हैं कि भारतीय समाज से जातियों का खात्मा अब भी केवल दिवास्वप्न है। हमारा मन आज भी सामाजिक तौर पर वहीं है, जहां आदिम समाज रहता था। सभ्यता और विकास के क्रम में आत्मा के विकास की यात्रा अभी भी कहीं पीछे छूट गई लगती है। मानवता को पीड़ित करने वाली तथा मन को व्यथित करने वाली जातीय अत्याचार की घटनाएं जब-तब समाज में होती ही रहती हैं। इस प्रकार की घटनाएं सभ्य समाज के अस्तित्व पर सवालिया निशान लगाती हैं।
भारतीय इतिहास के अनेक अनुभव जाति-भेद के शर्मनाक उदाहरणों से पटे पड़े हैं। इस प्रकार के उदाहरणों से सैकड़ों वर्ष बाद भी भारतीय समाज कोई सबक लेने को तैयार नहीं है। कई बार लगता है कि हम आज भी वहीं खड़े हैं, जहां कई हजार वर्ष पहले खड़े थे। पिछले कई दशकों में देश और विश्व में बहुत कुछ बदल गया, परंतु भारतीय समाज का यह रोग अभी तक यथावत बना हुआ है।
छत्रपति शिवाजी ने जब महाराष्ट्र के एक बड़े भूभाग पर कब्जा किया, तो महाराष्ट्र का कोई पुरोहित उनका राज्याभिषेक करने को तैयार नहीं था। अंत में काशी के गंगाभट्ट एक बड़ी दक्षिणा के बाद तैयार हुए, लेकिन उन्होंने शिवाजी का राजतिलक हाथ के अंगूठे की बजाय अपने दाहिने पैर के अंगूठे से किया, क्योंकि शिवाजी वर्ण व्यवस्था के सोपान में कहीं से भी क्षत्रिय सिद्ध नहीं होते थे। 1674 ई. की यह घटना अपने पूरे अपमान के साथ ऐतिहासिक ग्रंथों में दर्ज है।