क्या एक आवगुण सभी गुण को खत्म कर सकता है
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Answer:
Let us now learn about the various communication models:
Aristotle Model of Communication.
Berlo's Model of Communication.
Shannon and Weaver Model of Communication.
Schramm's Model of Communication.
Helical Model of Communication.
Answer:
हाँ एक अवगुण सभी गुण को खत्म कर सकता है l
Step-by-step explanation:
एक अवगुण बदल देता है कई गुणों को दुर्गुणों में l
ND एक कंपनी के अकाउंट डिपार्टमेंट में एक रिक्त पद भरने की प्राथमिक प्रक्रिया के बाद विजय और राजेश नाम के दो उम्मीदवार हर पैमाने पर खरे उतरे। इससे अधिकारियों के सामने समस्या खड़ी हो गई कि किसका चयन करें, किसे छोड़ें।
एक कंपनी के अकाउंट डिपार्टमेंट में एक रिक्त पद भरने की प्राथमिक प्रक्रिया के बाद विजय और राजेश नाम के दो उम्मीदवार हर पैमाने पर खरे उतरे। इससे अधिकारियों के सामने समस्या खड़ी हो गई कि किसका चयन करें, किसे छोड़ें। बहुत सोचने के बाद अधिकारी को एक उपाय सूझा और उसने उस पर अमल भी किया। अगले दिन वह दोनों उम्मीदवारों को विदा करने स्टेशन पहुँचा। वहाँ जब वह विजय से मिला तो उसने अधिकारी को एक पैकेट देते हुए कहा- सर, कल शाम को शायद आप यह पैकेट मेरे कमरे में ही छोड़ गए थे।
अधिकारी- अच्छा! यह पैकेट मेरा है। क्या है इसमें? इस पर विजय विनम्रतापूर्वक बोला- सॉरी सर! यह मैं कैसे बता सकता हूँ। यदि यह आपका नहीं है तो किसी और का होगा। होटल के रिसेप्शन काउंटर पर जमा करा दीजिएगा। जिसका होगा, वह ले जाएगा। अधिकारी ने हामीभर दी। तभी राजेश भी वहाँ आ गया। वह अधिकारी से बोला- आपकी कंपनी बहुत ही अच्छी है।
एक कंपनी के अकाउंट डिपार्टमेंट में एक रिक्त पद भरने की प्राथमिक प्रक्रिया के बाद विजय और राजेश नाम के दो उम्मीदवार हर पैमाने पर खरे उतरे। इससे अधिकारियों के सामने समस्या खड़ी हो गई कि किसका चयन करें, किसे छोड़ें।
ऐसी कंपनी में काम करने का मौका मिलना बड़े सौभाग्य की बात होगी। इस पर अधिकारी धीरे से मुस्कराते हुए बोला- जी हाँ, वह तो है, लेकिन कल मैं पचास हजार रुपयों वालाएक पैकेट आपके कमरे में भूल आया था। क्या वह पैकेट आप मुझे लौटाएँगे? उसकी बात सुनकर राजेश का चेहरा पीला पड़ गया। कँपकँपाते हाथों से उसने बैग से खुला पैकेट निकालकर अधिकारी के हाथों में रख दिया। फिर क्या था, फैसला हो चुका था।
दोस्तो, चाणक्य सूत्र है कि मनुष्य का एक भी अवगुण उसके बहुत से गुणों को दुर्गुण में बदल देता है, जैसा कि राजेश के साथ हुआ। उसके एक छोटे से लालच ने उसके सारे किए-धरे पर पानी फेर दिया। इसलिए कहा गया है कि कभी किसी छोटी बुराई के लिए भी दरवाजा मत खोलो। कहीं ऐसा न हो कि उसके साथ कोई बड़ी बुराई भी चली आए।
दोस्तो, चाणक्य सूत्र है कि मनुष्य का एक भी अवगुण उसके बहुत से गुणों को दुर्गुण में बदल देता है, जैसा कि राजेश के साथ हुआ। उसके एक छोटे से लालच ने उसके सारे किए-धरे पर पानी फेर दिया। इसलिए कहा गया है कि कभी किसी छोटी बुराई के लिए भी दरवाजा मत खोलो। कहीं ऐसा न हो कि उसके साथ कोई बड़ी बुराई भी चली आए। लेकिन बहुत से लोगों को लगता है कि छोटी-मोटी बेईमानी से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन बेईमानी छोटी हो या बड़ी, बेईमानी ही होती है।
छोटी-मोटी बेईमानी व्यक्ति की झिझक खत्म करके उसे बड़ी बेईमानी करने के लिए उकसाती है और यह क्रम कोई बड़ा दाँव मारने के चक्कर में धराने तक चलता रहता है, क्योंकि बेईमानी करने वाला कोई भी व्यक्ति अधिक समय तक बच नहीं सकता। कम से कम उसके आसपास के लोग तो उसकी करतूतों के बारे में जानते ही हैं। तब वे उसकी दिल से इज्जत करना बंद कर देते हैं, भले ही वह कितना ही बड़े वाला क्यों न हो।
छोटी-मोटी बेईमानी व्यक्ति की झिझक खत्म करके उसे बड़ी बेईमानी करने के लिए उकसाती है और यह क्रम कोई बड़ा दाँव मारने के चक्कर में धराने तक चलता रहता है, क्योंकि बेईमानी करने वाला कोई भी व्यक्ति अधिक समय तक बच नहीं सकता। कम से कम उसके आसपास के लोग तो उसकी करतूतों के बारे में जानते ही हैं। तब वे उसकी दिल से इज्जत करना बंद कर देते हैं, भले ही वह कितना ही बड़े वाला क्यों न हो। वैसे भी जिंदगी बेईमानी से नहीं, ईमानदारी से ही सँवरती है। जैसे कि उस विजय की सँवरी। उसने अवसर को पाने के लिए ईमानदार कोशिश के साथ ईमानदारी भी बरती और उसका फल भी पाया। वैसे उस पद की जिम्मेदारियों को निभाने की सारी योग्यताएँ दोनों में थीं, लेकिन विजय की ईमानदारी ने यह बता दिया कि वह चारित्रिक रूप से भी सुदृढ़ है, उपयुक्त है।
दूसरी ओर, जीवन में केवल चिकनी-चुपड़ी बातों और किताबी ज्ञान से ही आगे नहीं बढ़ा जा सकता। इसके लिए जरूरी है अच्छा इंसान होना। तब आप में काम की थोड़ी-बहुत समझ से भी काम चल जाता है, क्योंकि काम तो आप करते-करते भी सीख सकते हैं, लेकिन मूल्यों और संस्कारों का निर्माण एक लंबी प्रक्रिया है।
दूसरी ओर, जीवन में केवल चिकनी-चुपड़ी बातों और किताबी ज्ञान से ही आगे नहीं बढ़ा जा सकता। इसके लिए जरूरी है अच्छा इंसान होना। तब आप में काम की थोड़ी-बहुत समझ से भी काम चल जाता है, क्योंकि काम तो आप करते-करते भी सीख सकते हैं, लेकिन मूल्यों और संस्कारों का निर्माण एक लंबी प्रक्रिया है। यही कारण है कि आज के दौर में उन लोगों को ज्यादा जल्दी मौका मिलता हैं, जिनमें चारित्रिक दृढ़ता होती है, अच्छे संस्कार होते हैं, सद्गुण होते हैं। जिनमें ये नहीं होते, वे बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ हासिल करने के बाद भी मारे-मारे फिरते हैं या उन्हें मौका मिल भी जाए तो चरित्र उजागर होने के बाद वे दोबारा सड़क नापने लगते हैं। इसलिए मूल्यों के मूल्य को समझें और मूल्यवान बनें।
और अंत में, आज 'अकाउंटेंट्स डे' है। इस विभाग का तो सारा कारोबार ही ईमानदारी के भरोसे चलता है। यहाँ तो विजय जैसे लोग ही चाहिए। हालाँकि ईमानदारों की कीमत तो हर विभाग में होती है। इसलिए ईमानदार बनें, बने रहें। इससे आपको बहुत मिलेगा। अरे भई, आटे में नमक करते-करते नमक में आटा करने लगे।
hope you like it dear.