क्या होता अगर मनुष्य में शिष्टाचार नहीं होता ? बिना शिष्टाचार के मनुष्य क्या पा सकता है ? सोच विचार कर लिखें -
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ईश्वर के द्वारा रचे गए इस संसार में सबसे अद्भुत प्राणी सिर्फ मनुष्य ही है. मनुष्य को ही ईश्वर ने ज्ञान और बुध्दि से नवाज़ा है ,ताकि वो अन्य सभी प्राणियों में श्रेष्ठ रहे . मनुष्य जैसे जैसे बढता गया वैसे वैसे उसके जीवन में आमूल परिवर्तन आये है . और इन्ही परिवर्तनों ने उसके जीवन को और बेहतर बनाया और इस बेहतरी ने उसे अपने जीवन में अचार ,विचार, व्यवहार और संस्कारों से भरने का अवसर भी दिया . इन्ही सब बातो की वजह से उसने अपने जीवन में शिष्टाचार को भी स्थान दिया. इसी शिष्टाचार ने उसे समाज में एक अच्छा स्थान भी दिलाया. आईये हम मानव जीवन में मौजूद शिष्टाचार के बारे में जाने.
हमारे जीवन में शिष्टाचार का अत्याधिक महत्व है . शिष्टाचार की वजह से हमें सभ्य समाज का एक हिस्सा समझा जाता है .
हम लोग समाज में रहते हैं. समाज में रहने पर विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ सम्बन्ध भी पड़ता है. घर में - अपने माता-पिता पास-पडोस या टोला-मुहल्ला के लोगों के साथ या इष्ट-मित्र, स्कूल-कॉलेज या कार्य-क्षेत्र के सहकर्मियों के साथ, हाट-बाजार,या राह चलते समय भी विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों के साथ हमें मिलना-जुलना पड़ता है. हम लोगों का यह मेल-जोल प्रीतिकर या अप्रीतिकर दोनों तरह का हो सकता है. पुराने समय में यात्रा-क्रम में कहीं बाहर निकलने पर किसी अपरिचित व्यक्ति के साथ भी लोगों का व्यवहार शिष्टता पूर्ण ही होता था. किन्तु, आजकल इस शिष्टता का लगभग लोप ही हो गया है. आज वार्तालाप करते समय यदि कोई शिष्टता के साथ उत्तर देता है, तो हमें आश्चर्य होता है. क्योंकि, अब तो राह चलते, बस-ट्रेन से सफर करते समय प्रायः लोग एक दुसरे का स्वागत कटु शब्दों, ओछी हरकतों या कभी-कभी तो थप्पड़-मुक्कों से करते हुए भी दिखाई पड़ जाते हैं. परस्पर व्यव्हार में ऐसा बदलाव क्यों दिख रहा है ? इसका कारण यही है कि अब हमारे संस्कार पहले जैसे नहीं रह गये हैं. यदि हमारे व्यवहार और वाणी में शिष्टता न हो तो हमें स्वयं को सुसंस्कृत मनुष्य क्यों समझना चाहिए ?
शिष्टाचार का हमारे जीवन में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है. कहने को तो शिष्टाचार की बातें छोटी-छोटी होती हैं, लेकिन ये बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं. व्यक्ति अपने शिष्ट आचरण से सबका स्नेह और आदर पाता है. मानव होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति को शिष्टाचार का आभूषण अवश्य धारण करना चाहिए. शिष्टाचार से ही मनुष्य के जीवन में प्रतिष्ठा एवं पहचान मिलती है और वह भीड़ में भी अलग नजर आता है.जब कोई मनुष्य शिष्टाचार रूपी आभूषण को धारण करता है तब वह एक महान व्यक्ति के रूप में सबके लिए प्रेरणास्रोत बन जाता है. ये छोटी-छोटी बातें जीवन भर साथ देती हैं. मनुष्य का शिष्टाचार ही उसके बाद लोगों को याद रहता है और अमर बनाता है.
प्राचीन कवि भर्तृहरी ने कहा है :
|| केयूराणि न भूषयन्ति पुरुषं हाराः न चंद्रोज्ज्वलाः
न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालंकृताः मूर्द्धजाः
वाण्येका समलङ्करोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते
क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्. ||
अर्थात - शिष्ट+आचार= शिष्टाचार- अर्थात विनम्रतापूर्ण एवं शालीनता पूर्ण आचरण शिष्टाचार ही वह आभूषण है जो मनुष्य को आदर व सम्मान दिलाता है, शिष्टाचार ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है.
किस समय, कहाँ पर, किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए- उसके अपने-अपने ढंग होते हैं. हम जिस समाज में रहते हैं, हमें अपने शिष्टाचार को उसी समाज में अपनाना पड़ता है, क्योंकि इस समाज में हम एक-दूसरे से जुड़े होते हैं. जिस प्रकार एक परिवार के सभी सदस्य आपस में जुड़ होते हैं ठीक इसी प्रकार पूरे समाज में, देश में- हम जहाँ भी रहते हैं, एक विस्तृत परिवार का रूप होता है और वहाँ भी हम एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं. एक बालक के लिए शिष्टाचार की शुरूआत उसी समय हो जाती है जब उसकी माँ उसे उचित कार्य करने के लिये प्रेरित करती है. जब वह बड़ा होकर समाज में अपने कदम रखता है तो उसकी शिक्षा प्रारंभ होती है. यहाँ से उसे शिष्टाचार का उचित ज्ञान प्राप्त होता है और यही शिष्टाचार जीवन के अंतिम क्षणों तक उसके साथ रहता है. यहीं से एक बालक के कोमल मन पर अच्छे-बुरे का प्रभाव आरंभ होता है. अब वह किस प्रकार का वातावरण प्राप्त करता है और किस वातावरण में स्वयं को किस प्रकार से ढालता है- वही उसको इस समाज में उचित-अनुचित की प्राप्ति करवाता है.
शिष्टाचार हमारे जीवन का एक अनिवार्य अंग है. विनम्रता सहजता से वार्तालाप मुस्कराकर जवाब देने की कला प्रत्येक व्यक्ति को मोहित कर लेती है. जो व्यक्ति शिष्टाचार से पेश आते हैं वे बड़ी-बड़ी डिग्रियां न होने पर भी अपने-अपने क्षेत्र में पहचान बना लेते हैं. प्रत्येक व्यक्ति दूसरे शख्स से शिष्टाचार और विनम्रता की आकांक्षा करता है. शिष्टाचार का पालन करने वाला व्यक्ति स्वच्छ, निर्मल और दुर्गुणों से परे होता है. व्यक्ति की कार्यशैली भी उसमें शिष्टाचार के गुणों को उत्पन्न करती है. सामान्यत: शिष्टाचारी व्यक्ति अध्यात्म के मार्ग पर चलने वाला होता है. अध्यात्म के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का जन्म किसी वजह से हुआ है. हमारे जीवन का उद्देश्य ईश्वर की दिव्य योजना का एक अंग है. ऐसे में शिष्टाचार का गुण व्यक्ति को अभूतपूर्व सफलता और पूर्णता प्रदान करता है.
यदि व्यक्ति किसी समस्या या तनाव से ग्रस्त है,लेकिन ऐसे में भी वह शिष्टाचार के साथ पेश आता है तो अनेक लोग उसकी समस्या का हल सुलझाने के लिए उसके साथ खड़े हो जाते हैं. ऐसा व्यक्ति स्वयं भी समस्या के समाधान तक पहुंच जाता है. शिष्टाचार को अपने जीवन का एक अंग मानने वाला व्यक्ति अकसर अहंकार ईष्र्या लोभ क्रोध आदि से मुक्त होता है. ऐसा व्यक्ति हर जगह अपनी छाप छोड़ता है. कार्यस्थल से लेकर परिवार तक हर जगह वह और उससे सभी संतुष्ट रहते हैं. शिष्टाचारी व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहता है, क्योंकि ऐसा व्यक्ति सद्विचारों से पूर्ण व सकारात्मक नजरिया रखता