क्या हम भाग्य को विचार भी कह सकते है
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भारतवर्ष में भाग्य या किस्मत को शुरू से बहुत महत्व दिया गया है या यूँ कह लीजिए की भारतवर्ष बहुत हद तक भाग्यवादी है. क्या भाग्य कुछ है या विचार मात्र? भाग्य निर्धारित होता है या हमारे कर्म उसे निर्धारित करते हैं? किसी का जन्म अमीर घर में यहाँ होता है और ज़िंदगी में किसी चीज़ की कमी नहीं , कोई ग़रीब घर में जन्म लेता है है और ज़िंदगीभर अभावों से लड़ता है. कोई विकलांग है . किसी को सफलता जल्दी मिलती है , किसी को देर से. किसी के काम ज़ल्दी होते हैं , किसी के घिसट घिसट कर. किसी का दांपत्य जीवन सुखमय है. किसी का नहीं. ऐसा क्यूँ है ?आइए विचार करते हैं.
सबसे पहले कर्म विचार करते हैं . इसे मैं मस्तिष्क विचार भी कहूँगा क्यूंकी हम वही कर्म करते हैं जो हमारा मस्तिष्क कहता है . बिना विचारे जो करे सो पीछे पछताए. आपने देखा की लड़की अमीर घराने की है और देखने में ठीक है और विवाह कर लिया अब लड़की का चाल चरित्र और व्यवहार की पड़ताल नहीं की . फिर क्या होना है? इसमें भाग्य नहीं कर्म का दोष है. आपने कंपनी के बारे में पड़ताल किए बिना उसमें नौकरी की . कंपनी घाटे में है और कंपनी मालिक कंपनी बंद करके भाग जाते हैं. दोष किसका ? आपका, जिसने कंपनी के बारे में पड़ताल नहीं की. आपने बिल्डर की जाँच किए बिना औरउसकी माली हालत की जाँच किए बिना एक फ्लैट बुक किया. अब बिल्डर ना फ्लैट बनाता है, ना पैसा वापिस करता है ,और तो और ज़मीन भी विवाद में है. दोष किसका ? आपका, जिसे विचार करके काम करने थे. ऐसे ही और भी उदाहरण दिए जा सकते हैं. यह तो था कर्म विचार.
अब हम कर्म से आगे की बात करते है. आपने सोच समझकर कार्य किया फिर भी काम नहीं बना तब हम किसे दोष दें ? आपने सोच समझकर विवाह किया फिर भी आपका जीवनसाथी का व्यवहार अचानक आपके प्रति अच्छा नहीं रहा. आपके बेटा/ बेटी का अचानक ग़लत दिशाओं में मन लगने लगा है. आपकी कद्र नहीं करते . आपने सोच समझकर नौकरी या व्यवसाय किया परंतु उसमें तकलीफें ज़्यादा आ रही है. आपके काम ,अचानक आपको लगता है की बनते नहीं हैं, पूरे मन और सोच समझकर करने के बाद भी . और जैसा की मैने शुरू में लिखा कोई अमीर घर में है, कोई झोपडे में . कोई कार चला रहा है , कोई बैलगाड़ी.किसी का जन्म अमीर घर में , किसी का सड़क पर .कोई विकलांग. ऐसा क्यूँ ? आइए इस पर विचार करें.
सच तो यह है की आपके कर्म, चाहे पिछले जन्म के या इस जन्म के ,आपको उनका फल भोगना होगा . इंसान के कर्म उसका पीछा किसी भी जन्म में नहीं छोड़ते . इसीलिए भारतीय संस्कृति में सद्कर्म पर ज़ोर दिया गया है . यदि आप किसी का अहित करते हैं, जानबूझकर किसी को परेशान करते हैं या पृथ्वी का कोई नुकसान करते हैं ,याद रखिए यह दुष्कर्म आपका किसी जन्म तक आपका पीछा नहीं छोड़ेंगे और आपको उसका फल भुगतना होगा और उसका मोल कई गुना चुकाना होगा . वहीं सद्कर्म भी आपको कई गुना देंगे , इस जन्म और अगले जन्म तक. इसीलिए आप किसी को दुखी देखें तो आप समझ जाइए की वो मोल चुका रहा है दुष्कर्मों का . वहीं किसी को सुखीं देखें तो समझ जाइए की सद्कर्म उसका मोल चुका रहे हैं.इसे अँग्रेज़ी में law of karma कहते हैं .
इस सन्दर्भ में में यह भी कहना उचित होगा की दुनिया का नियम संतुलन है . पूरा अंतरिक्ष संतुलन पर ही तो टिका हुआ है. जितने आप सुख में खुश होंगे उतना ही आपको दुख़ भी उठाना पड़ सकता है इसीलिए आवश्यक है की सुख में समभाव रखा जाए अर्थात सुख में अधिक खुश होने की अवशयकता नहीं . इसीलये गीता में इंसान को स्थित्प्रग्य रहने की सलाह दी गयी है.
कोई माने ना माने दुनिया में सकारत्मक और नकारात्मक शक्तियाँ विद्यमान हैं . यह किस�� भी तरह की हो सकती हैं. इंसान , जगह , हवा आदि . इसीलिए किसी जगह जाकर,किसी से मिलकर सुख की अनुभूति होती है तो कभी घुटन होती है. आवश्यक है की इन्हें पहचाना जाए और सकारात्मक शक्तियों (positive energies) के पास तथा नकारात्मक शक्तियों(negative energies) से दूर रहा जाए क्यूंकी यह भी भाग्य पर प्रभाव डालती हैं . इन्हें पहचानने में अनुभव और सच्चे गुरु सहायता कर सकते हैं.
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