Hindi, asked by lavanyamhatre472, 3 months ago

क्या हमे औपचारिक निभाने की हद कर देनी​

Answers

Answered by alina123497
3

Answer:

निम्नलिखित उद्धरणो मे वह उचित एवं अनुचित का ज्ञान है जो मुझे चिंतन से प्राप्त हुआ है। मेरा चिंतन ही इसका मूल है। मेरे अनुसार जीवन में श्रेष्ठ बनने हेतु कैसे विचार होने चाहिए एवं क्या महत्वपूर्ण है यह मैंने बताया है।

(१)

मैं कौन हूँ ?

यह मेरा जानना ,मेरे लिए पर्याप्त है।

विश्व को बताने की ,

मुझे नहीं कदापि आवश्यकता लेशमात्र है।

विश्व की मेरे परिचय से अनभिज्ञता ,

विश्व का दुर्भाग्य है।

अतः हे विश्व !

यदि अपने भाग्य के सुर्य को सदा,

उदित रखना है चाहता,

तो तम रूपी प्रतीत होने वाली,

मेरी प्रकाश रूपी वास्तविकता,

जानने की नि:संदेह तुझे है आवयश्कता।

(२)

धर्म अथार्त कर्तव्य मतलब क्या करना चाहिए, होना चाहिए एवं क्या होता है। धर्म मे कही गई प्रत्येक बातें उसके वास्तविक रचनाकार द्वारा तार्किक एवं सर्वथा, सर्वदा उचित है परंतु हम धर्म के वास्तविक स्वरूप के दर्शन से वंचित है। हमे जिस धर्म के स्वरूप के दर्शन है या फिर हम जिस धर्म के स्वरूप के दर्शन धार्मिक ग्रंथों की सहायता से कर सकते है या हमने जिस धर्म के स्वरूप के दर्शन धार्मिक ग्रंथों की सहायता से किए थे वह धर्म का स्वरूप दृष्टिकोणो से प्रभावित है। धर्म के वास्तविक रचनाकार ने हमे धर्म के वास्तविक स्वरूप के दर्शन दिए है परंतु हम तक उनके द्वारा दिए गए धर्म के वास्तविक स्वरूप के दर्शन हम तक पहुँचाने वालो के दृष्टिकोणो से प्रभावित हो गये जो केवल वास्तविक दृष्टिकोण नहीं थे यही कारण है कि धर्म को दर्शन माना जाता है परंतु मेरे अनुसार धर्म दर्शन नहीं अपितु वास्तविकता अथार्त विज्ञान है। धर्म ग्रंथो द्वारा हमे जो भी धर्म के स्वरूप के दर्शन प्राप्त है उन सभी मे से बुद्ध धर्म की सर्वाधिक बातें सर्वथा उचित अनुसार है क्योंकि यह धर्म अत्यधिक पुराना नहीं है अतः हमें यदि धर्म के वास्तविक स्वरूप के दर्शन करने है तो हमे धर्म को वास्तिविकता की कसौटी पर कसना होगा एवं धर्म के स्वरूप के उसकी वास्तविकता के अनुसार दर्शन करना होगा जो कि हमे प्राप्त होने वाले धार्मिक ग्रंथों से कदापि संभव नहीं है। इस कर्म को अंजाम देने हेतु हमे चिंतन की सहायता लेना होगा।मेरे चिंतन के अनुसार धर्म की वास्तविकता की कसौटी उसे अंजाम देने से होने वाला परमार्थ है।

(३)

यदि आप बदलते दृष्टिकोणो से अत्यधिक परेशान है तो विपश्यना (विपस्सना) ध्यान इसका एक उचित समाधान है परंतु इसके प्रथम भाग (कायानुपस्सना) को अंजाम देने से नहीं पूर्णतः लाभ है। इसके पूर्ण लाभ हेतु इसकी पूर्णतः अनिवार्य है।

Similar questions