Computer Science, asked by bodyraja616, 4 months ago

क्यों और किस तरह शासकों ने नयनार और सूफी संतों से अपने संबंध बनाने का प्रयास किया​

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Answered by princechauhan97
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नयनार भगवान शिव के उपासक थे। इसने 6 ठी शताब्दी में दक्षिण भारत में शक्तिशाली भक्ति आंदोलन का आकार प्राप्त किया। लोगों के साथ लोकप्रिय होने के अलावा, आंदोलन को उस समय के शासकों का समर्थन और संरक्षण मिला। यह निम्नलिखित तथ्यों से प्रकट होता है

आशा है इससे आपको मदद मिली होगी!

Answered by shishir303
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शासकों ने नयनार संतो और सूफी संत के साथ संबंध बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया। अलग-अलग शासकों ने उन्होंने नयनार और सूफी संतों का समर्थन हासिल करने के लिए अनेक तरह के निर्णय लिए।

चोल शासकों ने अपने राजस्व पद को दिव्य स्वरूप प्रदान किया और अपनी सत्ता के प्रदर्शन के लिए अनेक शैव मंदिरों का निर्माण कराया, जिसमें पत्थर और धातु से बनी अपनी तथा संतों की मूर्तियां स्थापित करवाते थे। इस तरह उन्होंने जनमानस में लोकप्रिय कवियों, जो तमिल में भजन गाकर जनता का मन जीत लेते थे, को एक सम्मान प्रदान किया।

चोल शासकों ने तमिल में भाषा के भजनों के मंदिर में गाने की परंपरा भी प्रचलित की। परान्तक प्रथम ने संत कवि अप्पार, सुंदरार और संबंदर आदि जैसे संतों की धातु प्रतिमायें भी शिव मंदिर में स्थापित कराईं। यह प्रतिमाएं किसी उत्सव के दौरान मंदिर से बाहर निकाली जाती थी।

सूफी संत जो अपनी दुनिया में मस्त रहते थे और सत्ता से दूरी बनाकर रखते थे, लेकिन सुल्तानों द्वारा भेंट किये गये अनुदान और पुरुस्कारों  भी भेंट किए जिसे संत लोग सहज रूप से स्वीकार कर लेते थे। इन अनुदानों और पुरुस्कारों का उपयोग इस्तेमाल परोपकार के कार्यों जैसे जरूरतमंदों को खाना, कपड़ा और आवास की व्यवस्था करते थे। कई सुल्तानों ने खानकाहों को कर मुक्त जमीन इनाम में दी और दान संबंधी न्यास स्थापित किए। चूंकि सूफी संत जनता में बेहद लोकप्रिय थे इसलिये सुल्तान आदि इनका समर्थन पाकर अपनी लोकप्रियता बढ़ाना चाहते थे।

दिल्ली सल्तनत में जब तुर्की शासकों ने अपनी की सत्ता स्थापित तो उलेमाओं द्वारा लागू शरीया लागू किए जाने की मांग को ठुकरा दिया कि सुल्तान लोग जानते थे कि उनकी प्रजा अधिकतर गैर-इस्लामी है, ऐसे में इस तरह के नियम लागू करना ठीक नहीं होगा।

सूफी संत आध्यात्मिकता के प्रतीक थे और आध्यात्मिक सत्ता को ईश्वर से भी ऊपर मानते थे। उस समय के तत्कालीन शासक सूफी संतो से प्रभावित रहते थे और वह अक्सर अपनी कब्रें सूफी दरगाह और खानकाहों की दरगाह के नजदीक बनवाने की इच्छा व्यक्त करके जाते थे।

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