क्या प्रधानमंत्री स्वतंत्र दिवस पर लाल किले से झंडा नहीं फिर आते हैं
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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आजादी के बाद से ही लाल किले पर तिरंगा झंडा फहराया जाता रहा है। किले की प्राचीर से ही प्रधानमंत्री देश के नाम संबोधन देते रहे हैं। हालांकि सभी के मन में अकसर यह सहज सवाल उपजता रहा है कि आखिर आजादी के जश्न के लिए लाल किले को ही क्यों चुना गया। इसकी कोई सटीक वजह या लिखित दस्तावेज नहीं है, लेकिन ऐसे कई कारण रहे हैं, जिससे लाल किले पर तिरंगा फहराने की परंपरा बन गई। आइए जानते हैं कैसे लाल किला बना देश में आजादी के जश्न का केंद्र...
मुगल बादशाह शाहजहां ने 1638 से 1649 के दौरान लाल किले का निर्माण कराया था। दिल्ली के केंद्र में यमुना किनारे बना यह किला तब से ही सत्ता के केंद्र के तौर पर स्थापित रहा है। आक्रमणकारियों ने जब दिल्ली समेत उत्तर भारत में हमले किए तो उनके निशाने पर मुख्य तौर पर लाल किला ही रहा। 1739 में ईरान के तर्क शासक नादिर शाह का अटैक हो या फिर मराठाओं, सिखों, जाटों, गुर्जरों के हमले, इन सभी का केंद्र लाल किला ही था।
18वीं सदी की यह स्थिति 19वीं सदी में भी जारी रही और 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र भी एक तरह से लाल किला ही था। तब क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर रहे आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर म्यांमार भेज दिया था। यही नहीं अंग्रेजों ने लाल किले को भी भारी नुकसान पहुंचाया था।
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