क्या रोकेंगे प्रलय मेघ ये, क्या विद्युत-घन के नर्तन,
मुझे न साथी रोक सकेंगे, सागर के गर्जन-तर्जन।
मैं अविराम पथिक अलबेला रुके न मेरे कभी चरण,
शूलों के बदले फूलों का किया न मैंने मित्र चयन।
मैं विपदाओं में मुसकाता नव आशा के दीप लिए,
फिर मुझको क्या रोक सकेंगे जीवन के उत्थान पतन।
मैं अटका कब विचलित मैं, सतत डगर मेरी संबल,
रोक सकी पगले कब मुझको यह युग की प्राचीर निबल।
आँधी हो, ओले-वर्षा हो, राह सुपरिचित है मेरी,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे ये जग के खंडन-मंडन ।
मुझे डरा पाए कब अंधड़, ज्वालामुखियों के कँपन,
मुझे पथिक कब रोक सकें, अग्नि शिखाओं के नर्तन।
मैं बढ़ता अविराम निरंतर तन-मन में उन्माद लिए,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये बादल विद्युत नर्तन।
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kabhi ne kiski pravritti ka varnan kiya hai aur kaise Pati ki kya visheshta hai pralay mein ek bhi do Dhyan andheron jawalamukhi kiske prati ke Yug ke prachin se kabhi ka kya taatparya hai bataiye
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