क्या सूफी संतों की शिक्षा की असली सदी में उतने ही प्रासंगिक है जितनी तब लिखी गई थी अपने उत्तर के पक्ष में उचित तर्क दें
Answers
Answer:
सूफ़ीवाद या तसव्वुफ़[1] (अरबी : الْتَّصَوُّف}; صُوفِيّ} सूफ़ी / सुफ़फ़ी, مُتَصَوِّف मुतसवविफ़),, इस्लाम का एक रहस्यवादी पंथ है।[2] इसके पंथियों को सूफ़ी(सूफ़ी संत) कहते हैं। इनका लक्ष्य अपने पंथ की प्रगति एवं सूफीवाद की सेवा रहा है। सूफ़ी राजाओं से दान-उपहार स्वीकार नही करते थे और सादगी भरा जीवन बिताना पसन्द करते थे। इनके कई तरीक़े या घराने हैं जिनमें सोहरावर्दी (सुहरवर्दी), नक्शवंदिया, क़ादरिया, चिष्तिया, कलंदरिया और शुत्तारिया के नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
माना जाता है कि सूफ़ीवाद ईराक़ के बसरा नगर में क़रीब एक हज़ार साल पहले जन्मा। राबिया, अल अदहम, मंसूर हल्लाज जैसे शख़्सियतों को इनका प्रणेता कहा जाता है - ये अपने समकालीनों के आदर्श थे लेकिन इनको अपने जीवनकाल में आम जनता की अवहेलना और तिरस्कार झेलनी पड़ी। सूफ़ियों को पहचान अल ग़ज़ाली के समय (सन् ११००) से ही मिली। बाद में अत्तार, रूमी और हाफ़िज़ जैसे कवि इस श्रेणी में गिने जाते हैं, इन सबों ने शायरी को तसव्वुफ़ का माध्यम बनाया। भारत में इसके पहुंचने की सही-सही समयावधि के बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती बाक़ायदा सूफ़ीवाद के प्रचार-प्रसार में जुट गए थे।
Hope it helps you.