Hindi, asked by tani5670, 5 months ago

क्या समाज में सम्मान और अधिकार का एकमात्र हकदार पुरुष ही है? एकांकी के अधार पर अपने विचार प्रस्तुत करें​

Answers

Answered by savitashetty285
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Answer:

समान के अदीकार हम औरत भी हे

Answered by shailkumari01
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क्या महिलाओं का सम्मान सिर्फ इसलिए किया जाना चाहिए कि वे महिलाएं हैं, इस सवाल का जवाब कई महिलाएं ना में देती हैं. दिल्ली में रहने वाली और एक अंतर्राष्ट्रीय एड एजेंसी में काम करने वाली कोमल मीना कहती हैं, ‘एक समय था जब इसकी जरूरत थी, अब भी कई जगहों पर है. लेकिन अगर हम दिल्ली की बात करें तो यहां महिलाएं सिर्फ थोड़ी सी असुविधा से बचने के लिए कुछ प्रिविलेजेज चाहती हैं और इन्हें ही वे महिलाओं का सम्मान करना बताती हैं. उनका ऐसा करना औरतों की बराबरी की लड़ाई को कमजोर कर देता है. हमें बस ये ध्यान रखना चाहिए कि असल मकसद बराबरी है, विशेष दर्जा पाना नहीं.’एनआईटी जमशेदपुर से मास्टर्स कर रही मनु वागले भी ऐसा ही कुछ मानती हैं. वागले बहुत जोश के साथ कहती हैं, ‘नारी देवी होती है या पूजनीय होती है, ये सब बकवास बातें हैं. अगर कोई महिला कुछ अच्छा काम करती है तो मैं उसे सरस्वती-दुर्गा मानूंगी. नहीं तो बिन कुछ किए, फोकट में सम्मान चाहने वाली महिलाओं के लिए मेरे पास पूतना-ताड़का जैसे ही शब्द हैं. रेस्पेक्ट उसे ही मिलनी चाहिए जो डिजर्विंग है.’

मनु अपने कुछ अनुभव बांटते हुए बताती हैं, ‘यहां एनआईटी में हमारे कुछ सीनियर्स कहते हैं कि हमारी इज्जत करो हम बड़े हैं तो क्या हम सिर्फ उम्र ज्यादा होने के कारण उनकी इज्जत करेंगे? नहीं. जब तक तुमने इज्जत करने लायक कोई काम नहीं किया तुम्हें इज्जत कैसे मिलेगी. मुझे लगता है कि कोई दूसरी महिला हो या मैं खुद होऊं, सिर्फ लड़की होने के चलते इज्जत की हकदार नहीं है.’

यहां पर यह कहा जा सकता है कि किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली और किसी राष्ट्रीय संस्थान में पढ़ने वाली लड़की के लिए ऐसी बातें कहना आसान है. उनके सामने रोजमर्रा के उतने और वैसे संघर्ष नहीं होते हैं. या एक तरह का बढ़ावा और बराबरी मिलने के बाद ही वे वहां पर पहुंची हैं. लेकिन इस तरह के लोग ही ऐसा सोचते हैं ऐसा भी नहीं है. भोपाल की वंदना सागर जो एक समाजसेवी और सिंगल मदर हैं, बताती हैं, ‘महिलाएं हों या पुरुष दोनों को ही सम्मान देने की और कई बार समझे जाने की जरूरत होती है. एक को सम्मान देना दूसरे को अपमानित करने जैसा नहीं होना चाहिए. जैसे मान लीजिए अगर किसी ने आपको बस में धक्का दे दिया और आपको उसके इरादे गलत लगे तो आपने उसे, महिलाओं से कैसे पेश आना चाहिए, वाला पाठ पढ़ा दिया. मैं ये मानती हूं कि कई बार हमारे साथ गलत होता है लेकिन कई बार परिस्थितियां भी गलत होती हैं. हमें बराबरी चाहिए तो अपने आंख-कान भी खुले रखने चाहिए. मुफ्त का सम्मान मांगना आपको हंसी का पात्र बनाता है.’

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