क्या देखन सकती जंजीरों का गहना ?
हथकड़ियाँ क्यों ? यह ब्रिटिश राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ ? जीवन की तान
गिट्टियों पर अंगुलियों ने लिखे गान !
हँ मोट खींचता लगा पेट पर जुआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कुआँ ।
दिन में करूणा क्यों जगे रुलाने वाली.
A
इसलिए रात में गज़ब ढा रही आली ?
Answers
क्या देखन सकती जंजीरों का गहना ?
हथकड़ियाँ क्यों ? यह ब्रिटिश राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ ? जीवन की तान
गिट्टियों पर अंगुलियों ने लिखे गान !
हँ मोट खींचता लगा पेट पर जुआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कुआँ ।
दिन में करूणा क्यों जगे रुलाने वाली.
संदर्भ ► यह काव्यांश ‘माखनलाल चतुर्वेदी जी’ द्वारा रचित कविता “कैदी और कोकिला” से लिया गया है। इस काव्यांश के माध्यम से कवि ने भारत की स्वाधीनता के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध भारतीयों द्वारा किए जा रहे संघर्ष का मार्मिक चित्रण किया है।
भावार्थ ► कवि कहते हैं कि शायद कोयल उन्हें जंजीरों में जकड़ा देखकर चीख पड़ेगी, लेकिन फिर कवि कोयल से कहते हैं क्या तुम हमें जंजीरों में जकड़ा देख नहीं सकती। यह सब हमारी पराधीनता के कारण संभव हुआ है। यह हमें अंग्रेजों द्वारा दिया गया एक गहना है, अब तो ऐसा लगता है कि कोल्हू चलने की आवाज हमारे जीवन का गान बन गया है। हम कड़ी धूप में पत्थर तोड़ते-तोड़ते अपनी उंगलियों से उन पत्थरों पर देश की स्वतंत्रता का गीत लिखते हैं। हम अपने पेट पर बंधी हुई रस्सी से चरखा खींच-खींच ब्रिटिश सरकार के अकड़ का कुआँ खाली कर रहे हैं, अर्थात अतः ब्रिटिश सरकार के अहंकार को मिटा रहे हैं। तुम हमारी इस हालत को देखकर शायद परेशान हो रही हो, इसीलिए तुम्हारे मुख से वेदना भरी पुकार आवाज निकल रही है, जिसके कारण हमारे मन और हृदय में व्याकुलता उत्पन्न हो गई है।
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Answer:
कवि कहते हैं कि शायद कोयल उन्हें जंजीरों में जकड़ा देखकर चीख पड़ेगी, लेकिन फिर कवि कोयल से कहते हैं क्या तुम हमें जंजीरों में जकड़ा देख नहीं सकती। यह सब हमारी पराधीनता के कारण संभव हुआ है। यह हमें अंग्रेजों द्वारा दिया गया एक गहना है, अब तो ऐसा लगता है कि कोल्हू चलने की आवाज हमारे जीवन का गान बन गया है।