(क) युधिष्ठिर के भाई जलाशय से जल क्यों नहीं ला पाए?
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एक बार वन में भटकते-भटकते पांडव थक गये. पाँचों भाई प्यास से व्याकुल थे. धर्मराज ने नकुल को जल लाने को कहा. जल की तलाश करते नकुल एक जलाशय के समीप पहुँचे. वहाँ जल पीने के लिये झुके नकुल को सहसा ही किसी आवाज़ ने चौंका दिया. उस आवाज़ के जरिये उन्हें किसी ने चेतावनी दी कि जल पीने से पहले उन्हें उसके सवालों का जवाब देना होगा. सूखते कंठ की प्यास बुझाने के लिये नकुल ने उस आवाज़ की परवाह किये बगैर उस जलाशय का जल मुँह में भर लिया. जल की बूँदे शरीर में जाते ही नकुल की मृत्यु हो गयी.
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नकुल को वापस न आता देख बारी-बारी से सहदेव, अर्जुन और भीम वहाँ पहुँचे. इन सभी को जलाशय के समीप वही प्रश्न सुनायी दिया. नकुल की तरह उन तीनों भाईयों ने भी उस आवाज़ की परवाह किये बगैर जल पी लिया. उन तीनों भाईयों का हश्र वही हुआ जो नकुल का हुआ था. अपने चार भाईयों को वापस न आता देख किसी अनिष्ट की आशंका से युधिष्ठिर स्वयं उनको तलाशते जलाशय के समीप पहुँच गये. वहाँ पानी पीने के लिये झुके धर्मराज को भी वही प्रश्न सुनायी पड़ा. तब उन्होंने अपने भाईयों को वहाँ निष्प्राण पड़े देखा. युधिष्ठिर ने उसका परिचय पूछा तो उसने स्वयं को यक्ष बताया.
युधिष्ठिर ने यक्ष से प्रश्न पूछने को कहा-
यक्ष ने प्रश्न किया:
यक्ष: मनुष्य का कौन साथ देता हैं? युधिष्ठिर: धैर्य ही मनुष्य का साथ देता हैं.
यक्ष: यश लाभ का एकमात्र उपाय क्या है? युधिष्ठिर: दान
यक्ष: कौन हवा से भी तेज चलता है? युधिष्ठिर: मन
यक्ष: किसे त्याग मनुष्य प्रिय हो जाता हैं? युधिष्ठिर: अहं भाव से उत्पन्न गर्व के छूट जाने पर.
यक्ष: किस चीज के छूट जाने पर दुःख नहीं होता? युधिष्ठिर: क्रोध
यक्ष: किस चीज को गँवाकर मनुष्य धनी बनता हैं? युधिष्ठिर: लोभ
यक्ष: ब्राह्मण होना किस बात पर निर्भर हैं? जन्म, विधा अथवा शील स्वभाव पर ? युधिष्ठिर: शील स्वभाव पर
यक्ष: एकमात्र उपाय जिससे जीवन सुखी हो सकता हैं? युधिष्ठिर: अच्छा स्वभाव.
यक्ष: सर्वोतम लाभ क्या हैं? युधिष्ठिर: आरोग्य
यक्ष: धर्म से बढ़कर संसार में और क्या हैं? युधिष्ठिर: उदारता
यक्ष: कैसे व्यक्ति के साथ की गई मित्रता कभी पुरानी नहीं पड़ती? युधिष्ठिर: सज्जनों के साथ मित्रता.
यक्ष: इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या हैं? युधिष्ठिर: रोज हजारों लोग मर रहे हैं, फिर भी लोग चाहते हैं कि वे अनंत काल तक जियें.
इसी प्रकार यक्ष ने कई प्रश्न किये और युधिष्ठिर ने उन सबका योथोचित उत्तर दिया. धर्मराज के जवाबों से निरूत्तर यक्ष बोल पड़ा, “राजन! मैं तुम्हारे मृत भाइयों में से किसी एक को ज़िंदा कर सकता हूँ. तुम जिसे कहो वह जीवित हो उठेगा. युधिष्ठिर ने पल भर सोचा और कहा, “नकुल जी उठे”! युधिष्ठिर के इस प्रकार बोलते हुए यक्ष सामने प्रकट हुआ और बोला “दस हज़ार हाथियों के बल वाले भीम” को छोड़ कर आपने नकुल को प्राण युक्त करना क्यों ठीक समझा? भीम नहीं, तो अर्जुन को ही ज़िंदा करवा लेते, जिसकी रण-कुशलता सदा ही तुम्हारी रक्षा करती रही हैं.
युधिष्ठिर ने कहा,“महाराज! मनुष्य की रक्षा न तो भीम से होती है और न अर्जुन से. धर्म ही मनुष्य की रक्षा करता है और धर्म से विमुख हो जाने पर मनुष्य का नाश हो जाता है. मेरे पिता की दो पत्नियों में से कुंती का एक पुत्र मैं बचा हूं. मैं चाहता हूँ की माद्री का भी एक पुत्र जीवित रहे.” यक्ष ने उन्हें वर दिया, “पक्षपात से रहित मेरे प्यारे पुत्र,
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क बार वन में भटकते-भटकते पांडव थक गये. पाँचों भाई प्यास से व्याकुल थे. धर्मराज ने नकुल को जल लाने को कहा. जल की तलाश करते नकुल एक जलाशय के समीप पहुँचे. वहाँ जल पीने के लिये झुके नकुल को सहसा ही किसी आवाज़ ने चौंका दिया. उस आवाज़ के जरिये उन्हें किसी ने चेतावनी दी कि जल पीने से पहले उन्हें उसके सवालों का जवाब देना होगा. सूखते कंठ की प्यास बुझाने के लिये नकुल ने उस आवाज़ की परवाह किये बगैर उस जलाशय का जल मुँह में भर लिया. जल की बूँदे शरीर में जाते ही नकुल की मृत्यु हो गयी.
नकुल को वापस न आता देख बारी-बारी से सहदेव, अर्जुन और भीम वहाँ पहुँचे. इन सभी को जलाशय के समीप वही प्रश्न सुनायी दिया. नकुल की तरह उन तीनों भाईयों ने भी उस आवाज़ की परवाह किये बगैर जल पी लिया. उन तीनों भाईयों का हश्र वही हुआ जो नकुल का हुआ था. अपने चार भाईयों को वापस न आता देख किसी अनिष्ट की आशंका से युधिष्ठिर स्वयं उनको तलाशते जलाशय के समीप पहुँच गये. वहाँ पानी पीने के लिये झुके धर्मराज को भी वही प्रश्न सुनायी पड़ा. तब उन्होंने अपने भाईयों को वहाँ निष्प्राण पड़े देखा. युधिष्ठिर ने उसका परिचय पूछा तो उसने स्वयं को यक्ष बताया.
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