क्या यह पर्यावरण के अनुकूल है कैसे
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Explanation:
जीवन का मूल आधार है पर्यावरण। पर्यावरण का संतुलन प्रकृति, संस्कृति एवं विकृति के त्रिक पर आश्रित है। प्रकृति नियति का नैसर्गिक स्वरूप है। संस्कृति जीवन-शैली है। संस्कृति ही मानव में देवत्व उभारती है। विकृति वस्तुतः संस्कृति एवं प्रकृति दोनों की विलोम स्थिति है। विकृति के फलस्वरूप समाज में असुरता बढ़ने लगती है। प्रकृति को संवारना संस्कृति है, जबकि इसको बिगाड़ना विकृति।
संस्कृति के अंतर्गत ही तकनीकी विकास होता है। तकनीक विकास का क्रम सुविधाओं और आवश्यकताओं के लिए दिन-प्रतिदिन आगे बढ़ता गया। संस्कृति के अंतर्गत एक तथ्य पर सदैव बल दिया जाता रहा कि समाज और प्राकृतिक वातावरण के मध्य एक पारिस्थितिक संतुलन रहे। यही पारिस्थितिक संतुलन आदर्श पर्यावरण है। यदि संतुलन बिगड़ने लगे तो इसका अर्थ हुआ - पर्यावरण दूषित हो रहा है। प्रदूषण के मुख्यत: कारक हैं- सभ्यता का अति विकास, यांत्रिकता का अनावशयक विकास, पर्यावरण बोध रहित तकनीकी विकास, जनसंख्या विस्फोट, वनस्पतियों का विनाश, अनावश्यक औद्योगिक विस्तार, परमाणु बम का प्रयोग, मशीनों की अनिवार्यता, रसायनों का बढ़ता प्रयोग एवं मानसिक विकार।
प्राणिजगत् के लिए संतुलित वातावरण अत्यंत आवश्यक है, लेकिन पर्यावरण को प्रदूषित एवं असंतुलित करने के जिन उपर्युक्त कारकों को रेखांकित किया गया है, उन सभी का मुख्य कारण मानव समुदाय ही है। अदूरदर्शिता, स्वार्थ, सुविधा-भोग, जनसंख्या-विस्फोट आदि ने पर्यावरण को प्रदूषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
पर्यावरण और सृष्टि के बीच एक घनिष्ठ संबंध रहा है। सृष्टि-परिवर्तन के प्रभाव से पर्यावरण में भी परिवर्तन होता है। यदि परिवर्तन जीव-जगत् के लिए अनुकूल होता है तो यह कहा जाता है कि वे हमारे लिए ग्राह्य है। यदि परिवर्तन से प्राणी को प्रतिकूलता प्रतीत होती है तो वे अग्राह्य हैं। यही प्रतिकूलता प्रदूषण इंगित करती है।
वर्तमान में पर्यावरण का जो स्वरूप है, वह निश्चित रूप से प्रदूषित पर्यावरण का रूप है।