Hindi, asked by aum11wani, 1 year ago

कोयले के दलाली में हाथ काले पर एक कहानी

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Answered by Ritu124103
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कभी “कोयले की दलाली में हाथ काले” इस मुहावरे का अर्थ समझने मे काफ़ी वक़्त लगा था, परंतु अब तो यह भी बहुत जल्दी समझ मे आ गया कि कोयले की दलाली मे हाथ ही नही आत्मा भी कैसे काली हो जाती है. वाह रे मेरे देश के नेताओं- कितना और कितना बर्बाद करोगे देश को, अब तो देश की आत्मा कैसे दो-दो आँसू रो रही है, इसका मतलब भी समझ मे आ रहा है. उस पर आलम ये है कि अपने किए हुए इन दुष्कृत्यों से ध्यान हटाने के लिए रोज़ ही नये-नये बिल, एक कार्टूनिस्ट को देशद्रोह के अपराध मे जेल- बस यही सब करने मे लगे हैं हमारे राजनेता. मेरी समझ से यह बात बिल्कुल बाहर है कि इनके द्वारा किए गये घोटाले किस तरह से देशद्रोह का कार्य ना होकर देश की सच्ची सेवा है.

                           वर्तमान हालातों को देखकर मुझे मेरे हॉस्ट्ल-प्रवास की एक बहुत ही साधारण सी घटना याद आ जाती है कि- हमारे हॉस्टल मे अपने कमरे मे किसी भी तरह के बिजली के साधनों का प्रयोग वर्जित था- जैसे प्रेस, हीटर इत्यादि, फिर भी लड़कियाँ चोरी छुपे इनका इस्तेमाल करती थी और जब कमरे मे इनके इस्तेमाल से फ्यूज़ उड़ने से जैसे ही हॉस्टल की बिजली चली जाती थी तो तुरंत ही उस कमरे मे रहने वाली लड़की बाहर कॉरिडोर मे आके ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगती थी कि किसने अपने कमरे मे प्रेस या हीटर का इस्तेमाल किया है. शुरू-शुरू मे तो समझ मे नही आता था पर बाद मे समझ आने लगा कि बिजली जाते ही जो सबसे पहले बाहर निकल कर पूरा हॉस्टल सिर पर उठा ले, ये उसीका कारनामा है और यह अनुमान लगभग सही ही होता था- सो हमारे देश के सत्ताधारियों का भी यही हाल है, इनके घोटाले ज्यों ही नज़र मे आते हैं ये देश की जनता को बेवकूफ़ बनाने के लिए जनता का ध्यान इधर-उधर भटकाने की कोशिश करने लगते हैं, लेकिन ऐसा क्यों और आख़िर कब तक.

                        मेरे देशवासी अब तो इस सरकार की मंशा समझ ही गये हैं ऐसा मेरा विश्वास है क्योंकि “बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी” अब तो इस मुहावरे का मतलब शायद हमारी सरकार को तो नही पर हमें ज़रूर समझ मे आ गया है. अपने देशवासियों से भी यही विनती है कि अब जिस भी व्यक्ति को हम सत्ता के लिए चुने तो वो चुनाव पार्टी विशेष ना होकर व्यक्ति विशेष हो जिससे प्रबुद्ध लोग सत्ता मे आए, और हमे यही करना है, हर चुनाव बहुत सोच समझ कर करना होगा क्योंकि “दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है”.

Answered by krishankumar92
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 एक मुहावरा  है कि कोयले की दलाली मे हाथ काले   इस का मतलब समझने के लिए  दूध वाले के बेटे की कहानी से समझने मे आसानी होगी ।

एक गाँव मे एक दूध बेचने वाला रहता था । वो रोज़ सुबह दूध बेचने के लिए शहर जाता था ,उसके परिवार का बड़ी मुश्किल से गुजारा होता था । उसके एक लड़का था , वो पढ़ाई के साथ साथ अपने माता पिता के काम मे मदद करता था ।

दूध वाले का बेटा  श्याम लाल ने अपनी पढ़ाई  पूरी कर ली , और श्याम लाल अब नौकरी की तलाश करने लगा । कुछ समय बाद उसे शिक्षा विभाग मे  अफसर पद  पर नौकरी मिली । श्याम लाल को सरकारी नौकरी मिलने पर उसके माता पिता बहुत खुश हुए ।

श्याम लाल की उसके बाद शादी हो गयी तथा उनके एक बेटा हुआ ।धीरे धीरे समय व्यतीत होता गया और  श्याम लाल की नौकरी को 33 साल पूरे हो गये । उनका आफिस पी टी सी  की परीक्षा और उनके परिणाम तैयार करते थे , वो बहुत प्रामाणिक अफसर थे । उनके आफ़िस मे और साथी कर्मचारी थे उन्होने कुछ गलत काम करके भ्र्स्टाचार किया था , श्याम लाल निर्दोष थे । श्याम लाल का रिटायर होने का समय आया ,इनकी ईमानदारी और सादगी को देख कर यूनियन ने एक कार्यक्रम रखा , कार्यक्रम चल रहा था इसी बीच चपड़ासी एक नोटिस   लेकर आया , कार्यक्रम का सारा मजा किरकिरा हो गया । सभी लोगों को बहुत दुख हुआ , अब उन्हे रिटायरमेंट के बाद कोई आर्थिक लाभ नहीं मिलेंगे ,पेंशन और प्रोविडेंट फ़ंड  आदि कुछ नहीं मिलेगा ।

उन्होने सोचा था की रिटायर होने के बाद उन्हे पैसे मिलेंगे और अपना घर होगा , कब तक किराये के घर में रहेंगे  लेकिन अपनी ईच्छाओं को पूरी करने से पहले उन्हे मुश्किल आ गयी । श्याम लाल ने अपना पूरा जीवन सादगी में जिया था । लेकिन होनी को कौन टाल सकता है , श्याम लाल दुखी हो गये । आफ़िस में सबके साथ मिलकर काम करना होता है ,इसलिए उनका नाम भी भ्र्स्टाचार में शामिल हो गया । इसलिए मुहावरा कहा जाता है कोयले के दलाली में हाथ काले हो जाते हैं ।

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