को यम पुरुष का संधि विच्छेद
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- नारी शब्द का संधि विच्छेद करने से ना + अरि होता है अर्थात जिसका न तो कोई शत्रु है ना वह किसी की शत्रु है .पर फिर भी कभी वह गांधारी सदृश आँखों में पट्टी बाँध स्वयं की खुद ही शत्रु बन जाती है ...कभी अत्यधिक प्यार समर्पण के भाव के वशीभूत सीता और उर्मिला बन त्याग कर बैठती है ....कभी पुरुष के विकास के नाम पर यशोधरा सी किसी महात्मा बुद्ध द्वारा छली जाती है .और उसके सबसे बड़े शत्रु समाज के वे दुर्योधन हैं जिन्होंने महाभारत काल से लेकर आज तक अपने वंश को चिरंजीवी बना कर रखा है .नव रात्रि में शक्ति रूपेण नौ दुर्गा की पूजा वर्ष में एक नहीं दो -दो बार वह भी नौ रूपों में होती है .स्पष्ट बात है मनुष्य नारी को ना + अरि के रूप में ही देखता है फिर चाहे भयवश या चाहे भक्ति से वह शक्ति की उपासना धन और,विद्या बुद्धि से अधिक करता है क्योंकि सरस्वती पूजा ,लक्ष्मी पूजा वह वर्ष में सिर्फ एक दिन और देवी के एक रूप में ही करता है .यूँ भी समाज में बुद्धि ,विद्या,दक्षता ,प्रज्ञा का प्रमाण देती कई स्त्रियां मिल जाती हैं पर सही अर्थों में शक्ति प्रदर्शन की मिसाल विरली ही कायम कर पाती हैं पर क्यों
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