कबि ने जीबन में सबसे अधिक सुंदर ओर सुखकर क्या है और क्यू?
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ज्ञान के महत्व को प्रतिपादित करने वाले संत सुन्दरदासजी एक कवि ही नहीं बल्कि एक महान संत , धार्मिक एवं समाज सुधारक थे । उनका जन्म जयपुर राज्य की पुरानी राजधानी देवनगरी दौसा में भूसर गोत्र के खंडेलवाल वैश्य कुल में चैत्र शुक्ल नवमी संवत १६५३ में हुआ। उनके पिता का नामं साह चोखा उमर नाम परमानंद तथा माता का नाम सती था .सुन्दर दास जी संत दादू के शिष्य थे ।उनहोंने छोटी सी आयु में ही अपने गुरु से दीक्षा और आध्यात्मिक उपदेश प्राप्त कर लिया ।सुन्दरदास जी बाल ब्रम्हचारी ,बाल कवि एवं बाल योगी थे ।अपनी प्रखर प्रतिभा ,भगवत प्रेम एवं उत्तम स्वाभाव के कारण सबके प्रिय हो गए .संवत १६६४ में जगजीवन जी दादू शिष्य रज्जबजी आदि के साथ काशी चले गए .काशी में रहकर उनहोंने संस्कृत ,हिंदी व व्याकरण ,कोष षट्शास्त्र ,पुराण ,वेदान्त का गहन अध्ययन किया .संख्य योग ,वृदांत के वृहद् शास्त्र , उपनिषद , गीता ,योगवशिष्ठ,शंकर भाष्य आदि का भली भांति मनन किया. काशी में सुन्दर दास जी असी घाट के पास रहते थे ।
आप अपना अध्ययन समाप्त कर कार्तिक बदी चौदस , संवत १६८२ से जयपुर राज्य के शेखावटी प्रान्त्वर्ती फतेहपुर में आये और वहां निवास किया ।आप वहाँ योगाभ्यास कथा -कीर्तन तथा ध्यान आदि करते रहे ।आपका देशाटन के प्रति शौक होने के कारण जहां -जहां दादूजी गए व बसे थे तथा साम्भर ,आमेर ,कल्याणपुर,दिल्ली ,आगरा ,गुजरात ,लाहौर ,मेवाड़ ,मालवा ,बिहार आदि स्थानों पर प्रायः जाया करते थे । संत सुंदर दास जी का साहित्य सृजनकाल संवत १६६४ से लेकर मृत्यु पर्यंत चलता रहा .आपने ४२ मौलिक ग्रन्थ लिखे हैं ,जो आपकी प्रखर प्रतिभा को उजागर करते हैं ।आपके ग्रंथों की भाषा सरल ,सुबोध ,स्पष्ट ,सरस है और सभी रचनायें संयुक्त हैं ।स्वामी जी ने ब्रजभाषा , राज पूतानी और खड़ी बोली मिश्रित भाषा के साथ ही फ़ारसी शब्द मिश्रित पंजाबी ,पूर्वी तथा गुजराती भाषाओँ में कविता की है । सन् १६८२ में आप फतेहपुर शेखावाटी में आये ।लगभग ६० वर्ष की अवस्था तक आप मुख्यतः फतेहपुर में ही रहे ।फतेहपुर का नवास अलिफ खां आपका बहुत सम्मान करता था ।नवाब अल्फ खां स्वयं कवि था उसने ७७ ग्रंथों की रचना की हैं ।एक बार नवाब अलिफ़ खां ने आपको कोई चमत्कार दिखाने के लिए कहा तब आपने कहा कि नवाब साहब आप जिस जाजम पर बैठे हो उसे उठाकर देखो नवाब ने जाजम का एक कोना उठाकर देखा तो उसका गढ़ और दूसरा कोना उठाकर देखा तो पूरा नगर दिखाई दिया ।नवाब ने आपके पैर पकड़ लिए । ज्ञान मार्ग के अनुयायी सुंदर दास जी ने अद्वैत मत का प्रतिपादन किया है ।उनका ब्रह्म अद्वैत है , वह ज्ञानमय है और सर्वश्रेष्ठ शक्ति वाला है । संत जी ने गुरु महिमा ,गुरु उपदेश ,भ्रम निवारण ,रामनाम ब्रह्म का वास्तविक अर्थ , आत्मा का सच्चा स्वरुप आदि पर गहन विचार प्रगट किये हैं । संत सुंदर दास जी ने 'अधीरता ' पर सर्वाधिक छन्द लिखे हैं .इन्होंने इससे दूर रहने के लिए कहा है कि अधीरता तृष्णा को जन्म देती है । सुंदर तृष्णा है धुरी , लोभ वंश कि धार | इनसे आप बचाइए ,दोनों मारन हार | स्वामी जी का परपद गमन उजले अपने निवास स्थान सांगानेर में ९३ वें वर्ष की उम्र में कार्तिक शुक्ल अष्टमी वार बृहस्पतिवार विक्रम संवत १७४६ में हुआ .उसे उन्हीं के शब्दों में - सात बरस सौ में घटे,इतने दिन की देह | सुंदर न्यौरा आत्मा ,देह लेह की खेह |