कबिरा चित्त चमंकिया, 'चहुँ दिसि लागी लाइ।१ हरि सुमिरण हायूँहायूँ घड़ा,बेगे लेहु बुझाइ।।
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कठिन शब्दार्थ –
- चित्त = मन।
- चमंकियो = चकित हो गया, शंकित हो गया।
- चहुँदिस = चारों ओर।
- लाइ = आग।
- सुमिरन = स्मरण, भजन।
- बेगे = शीघ्र।
- पारब्रह्म = ईश्वर।
- उनमान = अनुमान, कल्पना।
- सोभा = रूप।
- देख्या = देखा, दर्शन प्राप्त किया।
- परमान = प्रमाण।
संदर्भ तथा प्रसंग –
प्रस्तुत दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कबीर के दोहों से लिए गए हैं। प्रथम दोहे में कबीर भगवद-भजन का महत्व बता रहे हैं और दूसरे दोहे में परमात्मा के स्वरूप के विषय में अपना मत प्रकट कर रहे हैं।
व्याख्या –
कबीर कहते हैं कि जगत में चारों ओर विविध तापों की आग लगी देखकर उनका मन चौंक कर सशंकित हो गया। उनसे बचने का उपाय सोचने लगा। तब उन्हें ध्यान आया कि उनके हाथों में तो प्रभु के स्मरण रूपी जल से भरा घड़ा है। तब क्या चिंता थी। शीघ्र ही वह आग बुझाई जा सकती थी। कबीर कहते हैं कि परब्रह्म तेज स्वरूप है किन्तु उस तेज का शब्दों में वर्णन कर पाना सम्भव नहीं है। केवल उसके बारे में अनुमान ही किया जा सकता है। उसके तुल्य कोई दूसरा रूप नहीं दिखता, जिससे तुलना करके उसका ज्ञान कराया जा सके, जिसने उसे देखा है। – उसी का कथन प्रामाणिक माना जा सकता है अथवा उसे देखने पर ही वास्तविक ज्ञान हो सकता है।
विशेष –
- सांसारिक ताप या विषयों के भोग की लालसा अग्नि के समान संतापित करने वाली है। इससे केवल परमात्मा का स्मरण करने वाला भक्त ही बच सकता है, यह मते व्यक्त किया गया है।
- परब्रह्म के स्वरूप को वाणी द्वारा नहीं समझाया जा सकता। उसका तो ज्ञानरूपी नेत्रों से ही दर्शन प्राप्त हो सकता है। ऐसा कबीर का मत है।
- ‘चित्त चमंकिया’ और ‘लागी लाइ’ में अनुप्रास तथा ‘हरि सुमिरन हाथों घड़ा’ में रूपक अलंकार है।
- भाषा सरल तथा मिश्रित शब्दावली युक्त है।
- शैली उपदेशात्मक है।