कबीरा गर्व न कीजिए कल गहे कर केस क्या जाने कि मरी है क्या घर क्या प्रदेश
(i) kal gahe Kar kes Ka artha aspasta kijie
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दोहे का अर्थ
"कबीरा गर्व ना कीजिये, काल गहे कर केश |
ना जाने कित मारे है, क्या घर क्या परदेश |”
यह कबीर जी का दोहा है और इस दोहे का अर्थ है =>
कबीर कहते हैं कि हे मानव ! तू क्या गर्व करता है? काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है। मालूम नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर तुझे मार डाले।
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