कबीर घास न नीदिए, जो पाऊँ तलि होइ।
उड़ि पडै जब आँखि मैं, खरी दुहेली होइ।14। ।। भाव स्पस्ट करे हिंदी में
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Answer: समान होने के लिए समाज से सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त किया जाना चाहिए। यह भेदभाव चाहे जातीय हो या आर्थिक। सभी लोगों को एक नजर से देखा जाना चाहिए और किसी के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। इसके अलावा अपने धन और शक्ति का प्रयोग कर किसी को प्रताड़ित नहीं करना चाहिए।
Explanation:
कबीर के दोहे सखी कहलाते हैं क्योंकि सखी शब्द साक्षी शब्द का तद्भव रूप है, जिसका अर्थ प्रत्यक्षदर्शी या साक्षी होता है। अनपढ़ कबीर ने इस दुनिया में सब कुछ सुना, देखा और सहा है। फिर उन्होंने दोहे के रूप में अनुभव व्यक्त किया। इसके अलावा कबीर का हर दोहा अपने आप में ज्ञान का भंडार है। वह मनुष्य को कुछ न कुछ सिखाता है।
कबीर भी घास की निंदा करने से इनकार करते हैं क्योंकि जो व्यक्ति उस समय अभिमान के कारण निंदा करता है वह उस वस्तु के गुणों पर ध्यान नहीं दे पाता है या उसकी विशेषताओं को भूल जाता है। जैसे मनुष्य अपने पैरों के नीचे घास के एक छोटे से भूसे को कुचलता है, यह भूल जाता है कि यह भूसा उसकी आंख में गिरने से उसके लिए दर्दनाक हो सकता है।
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