कबीर घास न नीदिए, जो पाऊँ तलि होइ। उड़ि पड़े जब आँखि मैं, खरी दुहेली होइ।।4।। जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय। या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।5।। please give me व्याख्या
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कबीर घास न नींदिये, जो पाऊँ तलि होई। उड़ी पड़े जब आंखि में, खरी दुहेली होई॥ घास का मतलब तुक्ष चीजों से है। कोई भी छोटी से छोटी चीज यदि आपके पाँव के नीचे भी हो तो भी उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए।
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