कबीरा इतना दीजिए, जामें
समाय ।
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कबीर दास जी भगवान से अरदास करते हुए कहते हैं कि प्रभु! टाप मुझे उतना ही दें जिसमें मैं अपना और अपने परिवार का पालन कर सकूं तथा मेरे द्वार पर संत जन आये तो उनका सत्कार मैं भली प्रकार कर सकूं।
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