कबीर जी की ऐसी एक रचना जो पाठ्यपुस्तक में नहीं है
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गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान।तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दानव्याख्या: गुरु के समान कोई दाता नहीं, और शिष्य के सदृश याचक नहीं। त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढकर ज्ञान - दान गुरु ने दे दिया।जो गुरु बसै बनारसी, शीष समुन्दर तीर।एक पलक बिखरे नहीं, जो गुण होय शारीरव्याख्या: यदि गुरु वाराणसी में निवास करे और शिष्य समुद्र के निकट हो, परन्तु शिष्ये के शारीर में गुरु का गुण होगा, जो गुरु लो एक क्षड भी नहीं भूलेगा।
samiyah❤♡♡♡♡♡❤
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