कबीर जी के गुरु स्वामी रामानंद मानें जाते हैं l अपने गुरु के मुख से अचानक निकले "राम" शब्द को ही गुरु मंत्र मानकर इन्होंने आजीवन इसी नाम की उपासना और प्रचार- प्रसार किया l यह भी माना जाता है कि इस युग के प्रसिद्ध सूफी संत शेख तकी का भी इन पर काफी प्रभाव पड़ा था l कबीर जहां भी किसी ज्ञानी संत या पीर-फकीर का नाम सुनते, उनके दर्शन और सत्संग से ज्ञान का लाभ अवश्य अर्जित किया करते थे l कबीर एक गृहस्थ व्यक्ति थे l कपड़ा बुनकर अपनी जीविका अर्जित किया करते थे l भीख मांगकर या दान लेकर पेट पालने पर इनका विश्वास नहीं था l कर्म योग पर ही उनकी आस्था थी और शिष्यों को भी कर्म करते हुए अध्यात्म साधना का उपदेश दिया करते थे इसीलिए उन्होंने "समाधि" और "अजपा-जाप" जैसी विधियों का आविष्कार किया था l कबीर स्वभाव के अक्खड़ ,फक्कड़ और मस्त मौला थे l हर बात में वह सत्य के प्रति अपना स्पष्ट दृष्टिकोण रखते थे l वह एकेश्वरवादी थे l ईश्वर के निर्गुण- निराकार,अनंत-अविनाशी और सर्व व्यापक तत्व को ही स्वीकार करते थे l उन्होंने प्रेम को भी महत्व दिया है , इसी कारण उनकी साधना पद्धति में दांपत्य - भाव की प्रधानता है l और वह आत्मा यानी अपने आपको "मैं राम की बहुरिया" कहते थे l
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