कबीर जी के क्रांतिकारी विचार (100 words )
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Explanation:
संत कबीर एक महान क्रांतिकारी कवि थे। जिन्होंने बिना लाग लपेट के समाज में व्याप्त कुरीतियों, बुराईयांे को उजागर किया था। उन्होंने समाज में व्याप्त जाति, धर्म, वर्ग आदि के मध्य विद्यमान भेदभाव को बडी सहजता से व्यक्त किया था।
उनकी वाणी बहुत सरल, सुन्दर, आम बोलचाल की भाषा में थी। उन्होने क्षेत्रीय भाषा अपनाकर दैनिक बोलचाल के शब्दो का प्रयोग अपनी वाणी में किया था।
उनके दोहा, साखी, बीजक, उलट, बंसिया आज भी शोध का विषय है। एक पंक्ति में एक ग्रंथ की बात कह देना उनकी विशेषता थी बडी आसानी से उन्होने अंधविश्वास, जातिय भेदभाव, छुआछूत, पांखड जैसी सामाजिक बुराईयो को व्यक्त किया था । यही कारण है कि आज कई कवि आकर चले गये परन्तु कबीर अपने स्थान पर अडिग हैं । उनके आसपस दुनिया का कोई कवि नहीं लगता है।
कबीर के दोहो को साखी कहा जाता है । साखी शब्द साक्षी का प्रतीक है । साक्षी का अर्थ है सामने होना । महान कबीर ने अपने जीवन में जो देखा जो सुना जो अनुभव किया उसी को अपनी साखियों में व्यक्त किया, जिन्हें दोहा भी कहा जाता है । इसी कारण आज साखी हिन्दी साहित्य में ज्ञान के कोष के रूप में जानी जाती है ।
Answer:
संत कबीर एक महान क्रांतिकारी कवि थे। जिन्होंने बिना लाग लपेट के समाज में व्याप्त कुरीतियों, बुराईयांे को उजागर किया था। उन्होंने समाज में व्याप्त जाति, धर्म, वर्ग आदि के मध्य विद्यमान भेदभाव को बडी सहजता से व्यक्त किया था।
उनकी वाणी बहुत सरल, सुन्दर, आम बोलचाल की भाषा में थी। उन्होने क्षेत्रीय भाषा अपनाकर दैनिक बोलचाल के शब्दो का प्रयोग अपनी वाणी में किया था।
उनके दोहा, साखी, बीजक, उलट, बंसिया आज भी शोध का विषय है। एक पंक्ति में एक ग्रंथ की बात कह देना उनकी विशेषता थी बडी आसानी से उन्होने अंधविश्वास, जातिय भेदभाव, छुआछूत, पांखड जैसी सामाजिक बुराईयो को व्यक्त किया था । यही कारण है कि आज कई कवि आकर चले गये परन्तु कबीर अपने स्थान पर अडिग हैं । उनके आसपस दुनिया का कोई कवि नहीं लगता है।
कबीर के दोहो को साखी कहा जाता है । साखी शब्द साक्षी का प्रतीक है । साक्षी का अर्थ है सामने होना । महान कबीर ने अपने जीवन में जो देखा जो सुना जो अनुभव किया उसी को अपनी साखियों में व्यक्त किया, जिन्हें दोहा भी कहा जाता है । इसी कारण आज साखी हिन्दी साहित्य में ज्ञान के कोष के रूप में जानी जाती है ।
भक्तिकालीन निर्गुण संत परंपरा के प्रमुख कवि कबीर का जन्म काशी में हुआ और निर्वाण मगहर में प्राप्त हुआ । उन्होने कोई प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। आस-पास के अनुभव से ज्ञान प्राप्त किया था। आस-पास की अव्यवस्था शब्दों में व्यक्त कर महानता प्राप्त की थी ।
संत कबीर भक्तिकालीन एक मात्र कवि थे जिन्होने राम-रहीम के नाम पर चल रहे पाखंड, भेद-भाव, कर्म-कांड को व्यक्त किया था। उस समय राज सत्ता, प्रभु सत्ता के नाम पर व्याप्त डर के कारण आम आदमी जो कहने से डरता था, उसे विचारक कबीर ने धूम धडाके से कहा ।
दार्शनिक कबीर का आदर्श मनुष्य धर्मिक, सामाजिक भेदभाव से मुक्त प्राणी था जो पत्थर नहीं पूजता था, ईश्वर के नाम पर मुर्गे जैसी बांग नहीं देता था। छोटे-बडे सभी उसके लिए बराबर थ्ज्ञे । जो कर्मवान था, ज्ञान का पुजारी था, अपने अंदर ईश्वर को खोजता था। उसके नाम की माला नहीं फेरता था बल्कि जुबान से भक्ति करता था, वह संकीर्णताओ से दूर था।