कबीर जी लालच को क्यों बुरी चीज कहते हैं ?
Answers
Answer:
. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ: कबीर जी कहते हैं उच्च ज्ञान पा लेने से कोई भी व्यक्ति विद्वान नहीं बन जाता, अक्षर और शब्दों का ज्ञान होने के पश्चात भी अगर उसके अर्थ के मोल को कोई ना समझ सके, ज्ञान की करुणा को ना समझ सके तो वह अज्ञानी है, परन्तु जिस किसी नें भी प्रेम के ढाई अक्षर को सही रूप से समझ लिया हो वही सच्चा और सही विद्वान है।
2. चाह मिटी, चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह,
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह।
अर्थ: इस दोहे में कबीर जी कहते हैं इस जीवन में जिस किसी भी व्यक्ति के मन में लोभ नहीं, मोह माया नहीं, जिसको कुछ भी खोने का डर नहीं, जिसका मन जीवन के भोग विलास से बेपरवाह हो चूका है वही सही मायने में इस विश्व का राजा महाराजा है।
3. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
अर्थ: इस दोहे में कबीर जी नें एक बहुत ही अच्छी बात लिखी है, वे कहते हैं जब में पुरे संसार में बुराई ढूँढने के लिए निकला मुझे कोई भी, किसी भी प्रकार का बुरा और बुराई नहीं मिला। परन्तु जब मैंने स्वयं को देखा को मुझसे बुरा कोई नहीं मिला। कहने का तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति अन्य लोगों में गलतियाँ ढूँढ़ते हैं वही सबसे ज्यादा गलत और बुराई से भरे हुए होते हैं।
4. माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोये
एक दिन ऐसा आयेगा मैं रौंदूंगी तोय।
अर्थ: मिटटी कुम्हार से कहती है, तू क्या मुझे गुन्देगा मुझे अकार देगा, एक ऐसा दिन आयेगा जब में तुम्हें रौंदूंगी। यह बात बहुत ही जनने और समझने कि बात है इस जीवन में चाहे जितना बड़ा मनुष्य हो राजा हो या गरीब हो आखिर में हर किसी व्यक्ति को मिटटी में मिल जाना है।
Answer:
इस दोहे के अनुसार एक छोटे से तिनके को भी कभी बेकार ना कहो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब होता है, क्योंकि यदि कभी वह उड़कर आँख में आ गिरे तो गहरी पीड़ा देता है। यानि कबीर ने स्पष्ट बताया है कि छोटे बड़े के फेर में ना पड़ें और सभी इंसानों को उनके जाति और कर्म से ऊपर उठ कर सम्मान की दृष्टि से देखें।
I hope this helps
please mark me branly