कबीर जी ने सच को किसके बराबर माना है ? *
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साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदै साँच है, ताके हिरदै आप॥ सच्चा होना, सच्चा बने रहना, इससे बढ़कर कोई तप नहीं है। HOPE IT HELPS
Answer:
कबीर जी ने सच को 'तप' के बराबर मान दिया है।
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदै साँच है, ताके हिरदै आप॥ सच्चा होना, सच्चा बने रहना, इससे बढ़कर कोई तप नहीं है संसार में।
Explanation:
कबीर ने सच को तप के बराबर माना है।
कबीर के इस दोहे से यह स्पष्ट होता है...
सॉंच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै सॉंच है, ताके हिरदै आप।।
अर्थात कबीर कहते हैं कि इस संसार में सच्चाई के मार्ग पर चलने से बड़ा या महान और दूसरा कोई तप नहीं है, इसका मतलब जो सत्य के मार्ग पर चलता है वह ही सच्चा तपस्वी कहलाता है। इस जग में झूठ बोलने से बड़ा और दूसरा कोई पाप नहीं, झूठ बोलने वाला व्यक्ति महापापी कहलाता है। और उसका झूठ उसे गर्त में ले जाता है तो कभी झूठ ना बोले हमेशा सच्चाई की रह पर चले।
जो व्यक्ति अपने ह्रदय में सच का वास रखता है उसके ह्रदय में साक्षात् प्रभु का वास् होता है।
इस तरह कबीर दास जी ने सत्य को तप के बराबर माना है।