कबीर जी ने सच को किसके बराबर माना है? *
(क) तप
(ख) पाप
(ग) झूठ
(घ) द्वेष
Answers
सही जवाब है...
(क) तप
स्पष्टीकरण:
कबीर ने सच को ‘तप’ के बराबर माना है।
कबीर कहते हैं कि....
सॉंच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै सॉंच है, ताके हिरदै आप।।
अर्थात कबीर कहते हैं कि इस संसार में सच्चाई के मार्ग पर चलने से बड़ा कोई तप नहीं है, यानि जो सत्य के मार्ग पर चलता है वह ही सच्चा तपस्वी है। इस संसार में झूठ बोलने से बड़ा कोई पाप नहीं, झूठ बोलने वाला व्यक्ति महापापी होता है।
जिस व्यक्ति के हृदय में सत्य का वास होता है, उस व्यक्ति के हृदय में साक्षात ईश्वर विराजते हैं।
इस तरह कबीर ने सच को ‘तप’ के समान माना है।
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HELLO DEAR,
प्रश्न:- कबीर जी ने सच को किसके बराबर माना है?
(क) तप
(ख) पाप
(ग) झूठ
(घ) द्वेष
उत्तर:- (क) तप
भारत के महान संतऔर अध्यात्मिक कवि कबीरदास का जन्म वर्षा 1440 में हुआ था। उन्होंने एक सामान्य गिरिया स्वामी और एक सूची के संतुलित जीवन को जिया है।
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदे सांच है, ताके हिरदे आप।
उपयुक्त कबीर जी के दोहे से यह स्पष्ट होता है कि वह यह कहना चाहते हैं, इस संसार में जो सत्य के मार्ग पर चलता है उससे बड़ा कोई तपस्वी नहीं। यदि कोई झूठ के मार्ग पर चलता है उससे बड़ा कोई पापी नहीं है।
इसलिए स्पष्ट होता है कि कबीर जी ने सच को तप के बराबर माना है।