कबीर के अनुसार ईश्वर किसके हृदय में वास करता है? *
(क) अमीर व्यक्ति के
(ख) गरीब व्यक्ति के
(ग) सच्चे व्यक्ति के
(घ) इनमें से कोई नहीं।
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Answer:
सच्चे व्यक्ति के
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Answer:
कबीर जी के अनुसर ईश्वर सचे व्यक्ति के रूपए में वास करता है|
Explanation:
कबीर के अनुसार ईश्वर हर प्राणी में निवास करता है। वह बाहर ढूंढने से नहीं मिलेगा। उसके लिए हमें अपने अंदर ही ढूंढना पड़ेगा। वह तो हर प्राणी की सांसों की सांस में निवास करता है|
ईश्वर की आराधना कोई समय साक्षेप व्यवस्था नही है, कोई कर्मकांड नही है जो दैनिक कर लिया तो हो गया, कबीर साहब ने कभी स्वयं किसी कर्मकांड नही किया, कोई माला नही फेरी, कोई पूजा पाठ नही किया बल्कि उनका सतत विरोध उन्होंने जीवन भर करते रहे. वे जानते थे और उनका अनुभव उतना ही समृद्ध था जितना किसी भी जागृत मनुष्य का हो सकता है|
ईश्वर का होना सामयिक नही है, वो सतत है, सदैव है, आदि है, अनन्त है, असल में हम उन्हें व्यख्यायित कर सकें उतनी औकात नही है अपनी, हम क्षुद्रतम हैं तो वो महानतम है. कबीर साहब का मतलब यही है कि हमारी स्वांस स्वांस जब तक ईश्वर से भर न जाये, हर आती जाती स्वांस में उन्ही का स्मरण रहे या उनका स्मरण स्वांसों की तरह हो जाये, सोते हुए भी साँसों की तरह स्मरण बना रहे तो ईश्वर उपस्थित है अन्यथा केवल भ्रम ही है. जब ईश्वर स्वांस में स्थित होता है तो ही ईश्वर समक्ष होता है|