Hindi, asked by apratapsingh7986, 10 months ago

कबीर के अनुसार मेरे किसका प्रतीक है

Answers

Answered by rishi102684
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Explanation:

कबीर नौबति आपनी, दिन दस लेहु बजाइ।

ए पुर पद्दन ए गली, बहुरि न देखहु आइ।।९९।।

कबीर कहते हैं कि हे जीवों ! चेत जाओ। जिस वैभव में तुम लिप्त हो, वह कुछ दिनों का परचम है अर्थात् क्षणिक है। तुम्हारी मृत्यु अवश्यंभावी है। फिर इस पुर, नगर और गली को न देख सकोगे।

जिनके नौबति बाजती, मैंगल बँधते बारि ।

एकै हरि के नाँव बिन, गए जनम सब हारि ।।१००।।

जिनके द्वार पर वैभव-सूचक नगाड़े बजते थे और मतवाले हाथी झूमते थे, उनका जीवन भी प्रभु के नाम-स्मरण के अभाव में सर्वथा व्यर्थ ही हो गया।

ढोल दमामा डुगडुगी, सहनाई औ भेरि ।

औसर चले बजाइ करि, है कोइ लावै फेरि।।१०१।।

इस जीवन में वैभव प्रदर्शन हेतु बाजे जैसे ढोल, धौंसा, डुगडुगी, शहनाई और भेरी विशेष अवसरों पर बजाए जाते हैं। परन्तु जीवन इतना क्षण-भंगूर है कि जो अवसर बीत गया, उसे पुन: वापस नहीं लाया जा सकता है।

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