कबीर कोई कवि नहीं बल्कि एक सच्चे समाज सुधारक थे पाठ से कुछ दोहों का उदाहरण देकर सिद्ध करो
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एक ऐसे संत ,भक्त, समाज सुधारक , फकीर थे कि आज तक न ऐसा कोई हुआ न शायद होगा | भक्त की बात कीजिए तो ऐसा कोई भक्त नही हुआ जो कह सके
“मैं तो मुतिया राम का जित खेचो उत् जाऊ ” इतनी बफादारी ,इतना समर्पण ,इतना विश्वास कि “जित खेचो उत् जाऊ ” कहीं शंका नही और वे स्वामी के लिए मोतिया
{कुत्ता } बनने से भी इनकार नहीं |
संत की बात करें तो कैसा संत वह जो कहता है “जो घर बारे {जलाए }आपनो चले हमारे संग | माया -मोह नहीँ लगाव नहीँ ,लोभ -लालच नहीँ |जो अपना ही नहीँ
सबका भला चाहता है | चेतावनी भी देता है ” तेरी गठरी में लागा चोर ,मुसाफिर जाग जरा |”
समाज सुधारक की बात करें तो ऐसा व्यक्ति जो खुले आम सबकी बुराई करता है —
१ “अरे ! इन दोऊ राह न पाई !
२ साधो देखो जग बौराना
साँच कहो तो मारन धावे झूठे जग पतियाना
हिंदू कहै मोहि राम पियारा तुरक कहै रहमाना||
३ कंकर पत्थर जोरि के मस्जिद लई बनाय ,
ता पर मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय |
४ पत्थर पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहाड ,
घर की चाकी कोई न पूजे जाको पीसो खाय |