Hindi, asked by jaathunter1818, 9 months ago

। कबीर के जीवन और रचना संसार पर प्रकाश डालिए​

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Answered by ramdpmb
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Answer:

कबीरदास पंद्रहवीं सदी में भारतीय रहस्यवादी साहित्य के कवि थे। कबीर हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन युग में निर्गुण शाखा के प्रचारक थे। उन्हें धर्म निरपेक्ष कवि माना जाता है, उन्हें समाज में फैली हुई कई कुरीतियों की आलोचना के लिए जाना जाता है। कबीरदास की शिक्षा को कबीर पंथ के नाम से जाना जाता है। कबीर ने अपनी रचनाओं में भक्ति को काफी हद तक शामिल किया है। साखी, सबद, और रमैनी को उनकी तीन प्रचलित रचनाओं के रूप में जाना जाता है। कबीरदास पढ़े लिखे नहीं थे इसलिए उनकी रचनाओं को उनके शिष्यों द्वारा लिखा गया था।  

Answered by bhatiamona
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कबीर के जीवन और रचना संसार पर प्रकाश

कबीर आज इस दुनिया में नहीं हैं, मगर उनकी कही गई बातें आज भी हम सभी के लिए अंधेरे में रोशनी का काम करती हैं| कबीरदास जी एक महान समाज सुधारक थे। उन्होंने अपने युग में व्याप्त सामाजिक अंधविश्वासों, कुरीतियों और रूढ़िवादिता का विरोध किया। कबीरदास भक्तिकाल के निर्गुण कवियों में एक थे| वह निर्गुण भक्ति में विश्वास करते थे ।कबीर जी  ने रूढ़ियों, सामाजिक कुरितियों, तिर्थाटन, मूर्तिपूजा, नमाज, रोजादि का खुलकर विरोध किया |  

'जाति प्रथा' समाज की एक ऐसी बुराई थी जिसके चलते समाज के एक बड़े वर्ग को मनुष्यत्व के बाहर का दर्जा मिला हुआ था। कबीर दास जी कहते हैं कि मनुष्य जीवन तो अनमोल है इसलिए हमें अपने मानव जीवन में किसी को दुःख नहीं चाहिए बल्कि हमें अपने अच्छे कर्मों के द्वारा अपने जीवन को उद्देश्यमय बनाना चाहिए।  

कबीर दास जी की रचनाएं

कबीरदास जी ने अपनी अनूठी रचनाओं के माध्यम से हिन्दी साहित्य में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया, साथ ही अपने दोहों से समाज में फैली तमाम तरह की बुराइयों  को भी दूर करने की कोशिश की है।

कबीरदास जी हिन्दी साहित्य के एक प्रकंड विद्धान, महान कवि एवं एक अच्छे समाज सुधारक थे। जिन्होंने हिन्दी साहित्य को अपनी अनूठी कृतियों और रचनाओं के माध्यम से एक नई दिशा दी। उनकी गिनती भारत के महानतम कवियों में होती है।

कबीरदास जी ने अपनी रचनाओं में न सिर्फ मानव जीवन के मूल्यों की व्याख्या की है बल्कि भारतीय संस्कृति, धर्म, भाषा आदि का भी बेहद अच्छे तरीके से वर्णन किया है।

कबीर दास जी की अन्य रचनाएं:

साधो, देखो जग बौराना – कबीर

कथनी-करणी का अंग -कबीर

करम गति टारै नाहिं टरी – कबीर

चांणक का अंग – कबीर

दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥

यह दोहा कबीर दास जी लिखा है इसका अर्थ है ,

कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी भगवान् को याद करते हैं पर सुख में कोई नहीं करता। यदि सुख में भी भगवान् को याद किया जाए तो दुःख हो ही क्यों !

जब मनुष्य बहुत दुखी होता ये बहुत परेशान होता है तब वह भगवान् को बहुत याद करता है , भगवान सब ठीक कर दो | लेकिन जब इंसान सुख में होता तब उसे कोई याद नहीं करता  तब सब कुछ भूल जाता है | हमें ऐसा नहीं करना चाहिए दुःख हो या सुख हमें भगवान के लिए रोज़ थोड़ा सा समय निकलना चाहिए और उनका धन्यवाद करना चाहिए हमें अच्छा जीवन देने के लिए और खुशियाँ देने के लिए |  भगवान् हमेशा हमारे साथ होते है|

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कबीर की साखी में ‘विष' और 'अमृत' किसके प्रतीक है?​

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